पापाजी.. बरसों पहले कितना सही लिखा था आपने..अश्रु ढुलकते पल-पल झर-झर... बीते पल लौट न पाते !!

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भावों का अद्भुत शाब्दिक चित्रण !!!

क्षणभंगुर जीवन पर हम सब,रहते हैं इठलाते..-- 'रासो'



 वर्ष 2020 की ये 20 तारीख मेरे लिए किसी कहर से कम नहीं।
 आज से चार महीने पहले 20 फरवरी को मैनें अपने पूज्य पापाजी को हमेशा के लिए खो दिया। न जाने क्यों, विश्वास नहीं होता कि पापाजी चले गए हैं...अब कभी लौटकर नहीं आएँगे..!
 पापाजी की याद आते ही अतीत की गठरी से निकलकर पापाजी के साथ बिताए अनगिनत पल,घटनाएँ यकायक आसपास सजीव हो उठते हैं...मानो, जैसे 'बीते पल लौट आए हों..!'
 लेकिन ये मेरा भ्रममात्र ही तो है...ये अब सिर्फ़ स्मृति-शेष हैं !



आज मैं आप सभी प्रबुद्ध मित्रों के समक्ष मेरे पापाजी द्वारा रचित कविता प्रस्तुत करने जा रही हूँ जिसे उन्होंने लगभग 45 वर्ष पूर्व लिखा था। यहाँ मैं यह बताना जरूरी समझती हूँ कि पापाजी सिर्फ़ शौकिया तौर पर कभी-कभार कविताएँ लिखा करते थे।
 पेशे से एक प्रोफेसर थे और जीवट इतने कि 80 वर्ष की उम्र में भी अंतिम समय तक विद्यार्थियों को पढ़ाते हुए इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हो गए।

अपने  मन में समय-समय पर उमड़े भावों को शब्दों में पिरोकर कविता का रूप देने का प्रयास कर लिया करते थे...  पापाजी की यह  मौलिक रचना आज प्रासंगिक हो उठी है...जिसके एक-एक शब्द  मेरे अन्तः करण को छू जाते हैं …!

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  🙏🏻✍🏻


  ""बीते पल  लौट ना पाते ""
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उषा की खुलती पलकों में टूटे सपने मुस्काते ,
बीते पल  लौट ना पाते ।।

घटता जाता जीवन प्रतिपल 
मिटता अधरों का हास धवल 
मूर्छित आशा सिसका करती,औ आंसू घुल जाते। 
बीते पल  लौट ना पाते ।।

नीड़ों में  विहगों का कुंजन,
भ्रमर-बाल  का गुनगुन गुंजन 
याद दिलाता जब शिशु थे हम ,कैसे थे तुतलाते।  
बीते पल  लौट ना पाते ।।


जीवन उमग उमग कर चलता 
समय उसे है पल-पल छलता 
इतिहासों के पृष्ठ मानवी ,परवशता पर मुस्काते
बीते पल  लौट ना पाते ।।


भ्रमित हृदय  की छलनी माया 
मंडराती रहती बन छाया 
खिलते देख किसी बगिया को ,कितने मन मुरझाते।  
बीते पल  लौट ना पाते ।।


भोगे भोग सभी इस जग के ,
निकल सके क्या कंटक पग के ,
क्षणभंगुर जीवन पर हम सब ,रहते हैं इठलाते।  
बीते पल  लौट ना पाते ।।


जब छा जाता तिमिर निशा का ,
पता न चलता मार्ग दिशा का ,
पुण्य विचार समय की धूमिल परतों से ढक जाते।  
बीते पल  लौट ना पाते ।।


पलक बरसते अविरल भर -भर ,
अश्रु ढुलकते पल-पल झर-झर,,
देख द्वार पर मौत खड़ी हम ,मन ही मन पछताते।  
बीते पल  लौट ना पाते ।।



शत-शत नमन🙏🏻

श्रद्धानवत

हिमा

20 जून,2020

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1 Comments

  1. गुरुदेव का काम करने का तरीका बहुत ही अलग व सुंदर था हर वक्त दूसरों को कुछ न कुछ सिखाने की ललक उनके मन में रहती थी उनके सानिध्य में मुझे भी कुछ कम करने का मौका मिला था यादें आज भी ताज़ा हैं

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