न्यायिक दृष्टांत -- न्यायालय के किसी भी प्रकरण में अब जाति का नहीं किया जाएगा उल्लेख

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राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति संजीव प्रकाश शर्मा द्वारा दिये गए आदेश को पुष्ट करते हुए रजिस्ट्रार जनरल ने जारी किए आदेश


-- न्याय की देवी की आंखों पर जो पट्टी बंधी हुई है,उसी अनुरूप जारी हुआ है आदेश


एडवोकेट एवं पत्रकार डॉ.मनोज आहूजा ✍🏻


जयपुर-- राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति संजीव प्रकाश शर्मा द्वारा 4.7.18 को एस.बी.क्रिमिनल मिसलेनियस एप्लिकेशन नम्बर 376/2018 बिशन पुत्र डाडली बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान में निर्णय पारित करते हुए राजस्थान सरकार व अधीनस्थ न्यायालयों तथा पुलिस विभाग को यह आदेश जारी किया कि अब वो किसी भी प्रोसिडिंग्स में अभियुक्त की जाति का उल्लेख नहीं करेंगे।इस मामले में अभियुक्त की जमानत के आदेश में जाटव के स्थान पर मेव जाति का अंकन हो गया था जिसकी वजह से अभियुक्त को 5 दिन तक न्यायिक अभिरक्षा में रहना पड़ा।जिस पर न्यायाधिपति ने उक्त याचिका का निस्तारण करते हुए उपरोक्तानुसार आदेश जारी किए थे।



इसी आदेश को कन्फर्म करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा दिनांक 27.4.2020 को राजस्थान के सभी न्यायालयों व न्यायाधिकरणों को ये निर्देश जारी किया गया है कि अब किसी भी मामले में जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा।मुझे इस आदेश की जानकारी हमारे केकड़ी के एडीजे साहब श्री मुकेश जी आर्य ने अभी हाल ही में मेरे द्वारा ऑनलाइन रिवीजन याचिका प्रस्तुत करने पर दी।मैंने उस याचिका में रेस्पोंडेंट धर्मपाल व संजू के आगे मीणा जाति का उल्लेख कर दिया था।जिस पर जज साहब ने मुझे इस बात की जानकारी दी कि माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार का स्टैंडिंग ऑर्डर जारी किया गया है।उक्त आदेश की जानकारी अभी तक पुलिस विभाग को भी नहीं हो सकी है।इसलिए मैंने इस लेख के माध्यम से पुलिस डिपार्टमेंट के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को जानकारी देने का सोचते हुए लेख लिखा है।

     आंखों पर बंधी पट्टी भी यही कहती है की जो व्यक्ति सामने खड़ा है उसको हम नहीं जानते






न्यायाधिपति द्वारा जारी उक्त आदेश में स्पष्टतया यह उल्लेख किया गया है कि जाति का उल्लेख किया जाना संविधान की भावना के खिलाफ है।ऐसे में अब किसी भी प्रोसिडिंग्स में जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा।इस आदेश के पीछे जो लॉजिक है वो न्याय की देवी के आंखों पर बंधी पट्टी का ही है।क्योंकि सामान्यतया हम देखते हैं कि इस समाज में कुछ जाति के लोग ज्यादातर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं।जैसे ही उसकी जाति का उल्लेख होगा।तो उसके प्रति एक धारणा मन में आ ही जाती है कि ये तो अपराधी ही होगा।और यही बात कहीं न कहीं न्याय के उदेश्यों में विफलता ला सकती है।इसके अलावा चूंकि हमारे समाज में जातिवाद का जहर भी पूरी तरह से फैला हुआ है।जिसके चलते यदि किसी एक भी व्यक्ति के मन में यदि इस बात का असर होता है तो निश्चित तौर पर कहीं ना कहीं इस न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगने की संभावना रहती है।मेरी राय में इसी मूल भावना को ध्यान में रखते हुए ये आदेश जारी हुए हैं।और कानून की ये सूक्ति भी है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए, न्याय दिखना भी चाहिए।इस आदेश से न्याय की देवी के आंखों पर जो पट्टी बंधी हुई है उसकी सार्थकता सिद्ध होती है।हमारे देश व प्रदेश की न्याय व्यवस्था में समय समय पर सुधार व संशोधन किए जाते रहे हैं।न्यायाधिपति संजीव प्रकाश शर्मा द्वारा जो ये आदेश जारी किया गया है उक्त आदेश राजस्थान की न्यायपालिका के लिए मील का पत्थर साबित होगा।इस आदेश की पालना ना केवल राजस्थान उच्च न्यायालय वरन अधीनस्थ न्यायालयों व न्यायाधिकरणों तथा पुलिस डिपार्टमेंट को भी करनी है।लेकिन एस.सी.एस.टी.के मामलों में ये आदेश लागू नहीं होगा।

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