पेट मे बच्चे के साथ 1200 किलोमीटर का सफर सोमोती कैसे तय करेगी ?? Migrants trudge back home- Misery far from Over

देखा गया
संदर्भ : अगले जन्म मोहे कैदी बनाइयो
 ?


वरिष्ठ पत्रकार: महेश झालानी ✍🏻

काश ! बिरदी मजदूर के स्थान पर कैदी होता तो उसे इस तरह अपनी पत्नी और मासूम बच्चों के साथ पापडे नही पीटने पड़ते । कैदी होने पर ना खाने की चिंता रहती और न ही रहने को मकान का झंझट पालना पड़ता । आज बदरी ना मर सकता है और ना ही जी सकता है । भूख, प्यास, बच्चों की आर्तनाद, यही उसकी नीयति बन कर रह गई है ।

बदरी भी भूख और प्यास से बिलखते हुए लाखों मजदूरों में से एक पात्र है । उसकी वेदना सुनकर पत्थर दिल इंसान भी अपना सर्वत्र न्योछावर कर अपने को धन्य समझेगा ।
कोरोना से पहले उसका पीओपी का धंधा बखूबी चल रहा था । पत्नी सोमोती भी खुश और वह भी खुश । एक ही झटके में कोरोना ने उसको पूरी तरह तबाह कर दिया । ठेकेदार के पास 28 हजार जमा थे । ठेकेदार के पैसे अटक गए तो वह लेबर को बकाया देता कैसे ?




पिछले कई दिनों से वह बिहार के मधुबनी जिला अंर्तगत अपने गांव जाने को बेताब था । जाए तो तब, जब जेब मे रुपये हो । कुल 180 रुपये के अलावा फूटी कौड़ी नही थी । उसने अपनी व्यथा सुनाने के लिए कलेक्टर जोगाराम, प्रतापसिंह खाचरियावास तथा लालचंद कटारिया समेत अनेक लोगो को फोन किया । किसी ने फोन नही उठाया तो किसी ने दी मीठी गोली ।

आखिकार अपने एक परिचित से 5 हजार रुपये के लेकर परदेस से 1150 किलोमीटर की दूरी नापने के लिए चल पड़ा अपने देश ।कल रात को न्यू सांगानेर रोड़ पर उससे बात हुई तो आंख से आंसू छलक पड़े । बदरी अपनी पत्नी सोमोती, सात वर्षीय एक पुत्र, डेढ़ साल की बेटी के साथ कुछ कपड़े-लत्ते लेकर चल पड़ा मौत के कुएं में छलांग लगाने ।

गर्भवती होने के अलावा सोमोती के पांव में दर्द भी है । पैर फिसलने के कारण कुछ महीनों पहले ऐड़ी में फ़्रैक्चर होगया था । दर्द ने पीछा अभी तक नही छोड़ा है । सामान के नाम पर एक बिसलेरी की खाली बोतल, एक चादरा तथा बच्चों के कपड़े लत्ते है । ना पीने को पानी है और ना ही खाने को रोटी । चार परांठे, एक पारले जी का पैकेट और पानी की बोतल भरकर चले थे । अब सब कुछ रीत गया है ।

चलते समय परिचित ने कहाकि कुशलता से पहुंच जाओ तो खबर करना । तब बदरी ने रोते हुए यही कहा-भैया जिंदा पहुँचेगे तभी बात हो पाएगी । बदरी अपने परिवार के साथ चल तो पड़ा है । लेकिन वह सही सलामत घर पहुँच पायेगा, इसमें संदेह है । डेढ़ वर्ष की बेटी बुखार से तप रही थी । कॉम्बिफ्लेम दिखाते हुए पूछा-यह दवा ठीक है या नही ।

बदरी जैसे मजदूरों से कई गुना बेहतर स्थिति कैदी की है । मटन से लेकर चिकन, चीकू से लेकर सेव तक सबकुछ आसानी से मुहैया है । ना कपड़ो की चिंता और न ही रहने की । जितने पैसे मजदूरों को पारिश्रमिक मिलता है, उससे ज्यादा पैसा कैदियों पर खर्च किया जाता है । यह देश के मजदूरों की त्रासदी । दिखावे को सब टसुए बहाने का अभिनय कर रहे है । हकीकत में ना राजनेताओं को गरीबो की चिंता है और न ही अफसरों को ।

Post a Comment

0 Comments