दक्षिणी भारत से हो सकता है भाजपा का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष...?
वक्त किस पर मेहरबान होगा, इसका जवाब भी वक्त के पास ही है!
कैलाश शर्मा ✍🏻
जयपुर (राजस्थान)
राजस्थान की भाजपा राजनीति इस समय धीमी आंच में अर्थात गैस चूल्हे के सिम पर पक रही है। चार पांच दिन से रोला है राज्य मंत्रिमंडल में बदलाव का, मीडिया के अलावा चूरू से दिल्ली तक यह चर्चा गतिशील है। चर्चाओं के सिलसिले में तांका-झांकी करने के बाद निष्कर्ष यह सामने आया कि राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल से पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का मनोनयन होना है। अर्थात अब यह लग रहा है कि राजस्थान सरकार के मंत्रिमंडल का बदलाव भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के मनोनयन के बाद होगा...पर इस के समानांतर यह भी कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भजनलाल के मुख्यमंत्री पद पर कोई खतरा तो नहीं?
पहले चर्चा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की--
यह तो तय है कि भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चयन नहीं मनोनयन होना है और मनोनयन का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत की सहमति के पैरामीटर पर निर्भर है। संघ से एक नाम डिस्कस में आया है संजय जोशी का, लेकिन यह नाम 49 प्रतिशत पर अटक रहा है इसलिए कि कैंप नरेंद्र मोदी इसे पचा नहीं पा रहा। कैंप नरेंद्र मोदी से प्रचरणAचरण में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर का नाम डिस्कस के लिए लाया गया था, लेकिन संघ की अंदरूनी रिपोर्ट के अनुसार मंत्री के तौर पर उनकी परफॉर्मेंस अपेक्षा के अनुरूप दिख नहीं रही, अतः फिलहाल इस नाम को टाल दिया गया है।
ऐसे में दो बातें डिस्कस हो रही हैं.... पहली यह कि इस बार भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष दक्षिणी भारत से लाया जाये। इस क्रम में दो नामों पर मंथन भी हुआ, पहला नाम एन टी रामाराव की बेटी और आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डी पुरंदेश्वरी का, लेकिन संघ ने यह कहकर आब्जेक्शन किया है कि ये 2004-14 तक कांग्रेस में थी और डा मनमोहनसिंह सरकार में मंत्री भी। दूसरा नाम उत्तर बेंगलुरु से सांसद शोभा करांदलाजे का, उनके पक्ष में महत्वपूर्ण बात है कि वे पांच दशक से संघ से जुड़ी हैं तथा तीसरी बार भाजपा से सांसद हैं। उनकी छवि एक कुशल प्रशासक की है। रह रह कर धर्मेंद्र प्रधान का नाम भी डिस्कस में बरकरार है। बाकी वक्त बताएगा कि मनोनयन किस का होता है।
अब बात राजस्थान मंत्रिमंडल फेरबदल की....
पर यहां एक पेंच यह भी फंसा है कि वर्तमान मुख्यमंत्री भजनलाल की परफॉर्मेंस रिपोर्ट परफेक्ट नहीं आ रही, यहां तक कि जयपुर से भी इंटेलीजेंस का इनपुट पाज़ीटिव दिल्ली नहीं गया है। एक कुशल प्रशासक के तौर पर वे स्थापित नहीं हो पाये। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन सिंह राठौड़ के पास भी प्रदेश भर से शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। पार्टी पदाधिकारियों की तो दूर खुद विधायकों व मंत्रियों की चलत सिस्टम में नहीं है, काम की गति मंद है। भ्रष्टाचार के आरोप अनगिनत हैं, निष्कर्ष यह है कि भजनलाल सरकार के कार्य प्रदर्शन से दिल्ली पूरी तरह खुश नहीं है। ऐसे में बदलाव की चर्चा भी शुरू हो गई है।
यहां एक दिलचस्प परिदृश्य और है, वह यह कि जिस भी मुख्यमंत्री ने सांभर को जिला बनाने से मना किया अथवा इग्नोर किया वह एक साल के भीतर मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहा। यह डेस्टिनी है, हाल ही भजनलाल सरकार ने जब कांग्रेस सरकार द्वारा घोषित जिलों में अनेक को निरस्त किया था, तो यह मांग उठी थी कि दूदू की बजाय सांभर को जिला बना दिया जाये, क्योंकि आजादी के पहले वह ब्रिटिश राज और रियासत काल में जिला था, लेकिन भजनलाल सरकार ने इस मांग को अनसुना कर दिया। अब जिस तरह के राजनीतिक हालात हैं, उसमें डेस्टिनी अगर प्रभावी हो गई तो भजनलाल के हाथ से मुख्यमंत्री पद जा भी सकता है। ऐसे में मंत्रिमंडल का फेरबदल फिर नये मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हो यह भी लग रहा है। लिहाजा मंत्रिमंडल फेरबदल में कौन आयेगा, कौन जायेगा यह प्रथम चरण में भाजपा के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के मनोनयन उपरांत ही कहा जा सकता है। हां इतना जरूर है कि भजनलाल के हाथ से मुख्यमंत्री पद फिसलता है या बना रहता है, अब यह उत्सुकता वाली बात है।
अगर भजनलाल मुख्यमंत्री नहीं रहते हैं उस स्थिति में क्या होगा? यह सवाल भी समानांतर महत्वपूर्ण है और इसके जवाब में फिलहाल दो नाम आते हैं, पहला गजेन्द्र सिंह शेखावत का और दूसरा प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सी पी जोशी का। इतना अवश्य है कि वसुंधरा राजे का नाम इस क्रम में कहीं नहीं है, राजेन्द्र राठौड़ व सतीश पूनिया विधायक ही नहीं हैं और अरूण चतुर्वेदी को तो टिकट भी नहीं मिला था। लिहाजा वक्त किस पर मेहरबान होता है, इसका जवाब भी वक्त के पास ही है।
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