Savitribai Phule Jayanti:- जब पूरे नाई समाज ने 'मुंडन' का बहिष्कार कर दिया था, Pseudo Feminism को आईना दिखाती एक सशक्त महिला की Story

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 सावित्रीबाई फुले जयंती विशेष

सावित्रीबाई फुले- जिनकी मौज़ूदा माहौल में एक बार फिर ज़रूरत है !


Editor Desk ✍🏻


क्या आप जानते हैं ??


 देश की पहली महिला प्रिंसिपल सावित्रीबाई पढ़ाने जाते समय दो साड़ियाँ साथ ले जाती थीं ..!

Pseudo feminism को आईना दिखाती सावित्रीबाई फुले !

यशवंत फुले वास्तव में किसके पुत्र थे ?


सावित्रीबाई ने विधवा मुंडन रोकने के लिए क्या अनोखा तरीका अपनाया था ?


वैध/ अवैध गर्भस्थ शिशु (लड़का व लड़की) हत्या को रोकने के लिए क्या किया ?
पहला अन्तर्जातीय विवाह कब व किसने करवाया ?


आईये जानते हैं-


जैसा कि विदित है कि "महिला सशक्तिकरण" की मिसाल कायम करने वाली सावित्रीबाई फुले की आज 3 जनवरी को जयंती मनाई जाती है। वैसे तो उन पर अब तक काफी कुछ लिखा जा चुका है, लेकिन देश के वर्तमान हालातों को देखते हुए ऐसी महान व्यक्तित्व की धनी महिला के बारे में बार-बार लिखना व उनके द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों की याद दिलाते रहना मैं अपना "पत्रकारिता धर्म" समझती हूँ।


  क्योंकि ये सारे घटनाक्रम आज से लगभग 160 साल पुराने हैं जब समाज मे व्याप्त तमाम कुरीतियाँ अपने चरम पर थीं, ऐसे में सुधार का या कहें कि "क्रन्तिकारी बदलाव" का initiative लेना 'उस कालखंड' में किसी 'दुस्साहस से कम न था !

इस दुस्साहस के परिणामस्वरूप ही सावित्रीबाई फुले को देश के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रधानाचार्या बनने और पहले किसान स्कूल की स्थापना करने का श्रेय जाता है। सावित्रीबाई ने अनेकों कष्ट उठाते हुए महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया .... जब वो विद्यालय जाती थीं तो लोग उन पर पत्थर, गोबर, कीचड़ डाल देते थे..यही वजह थी कि वो अपने साथ एक साड़ी ले जाती थीं जिसे विद्यालय जाकर बदल लेती थीं।



 विधवाओं का उद्धार--

 दरअसल उस काल मे विधवाओं की बड़ी दयनीय थी...विधवा होने पर उनके ही परिवारजन उनका शारीरिक शोषण करते थे। इस दौरान यदि गर्भ ठहर जाता था तो उस भ्रूण की हत्या करवा दी जाती थी। इतना ही नहीं, विधवाओं का मुंडन भी करवाया जाता था। 

यह सब देख सावित्रीबाई ने विधवाओं का मुंडन रुकवाने के लिए बहुत ही अनूठा तरीका अपनाया। उन्होंने सीधे 'नाई समाज' से मिलकर बात की, उन्हें समझाया। बताया जाता है कि उनके समझाने पर सभी नाईयों ने विधवाओं का मुंडन करने से साफ़ इनकार कर दिया था और फुले के संगठन में शामिल हो गए थे।

 जहाँ तक विधवाओं के शारीरिक शोषण व उनके बच्चों की हत्या की कुप्रथा थी..इसके समाधान के लिए फुले ने 1853 में बालहत्या प्रतिबंधक गृह स्थापित किया जहाँ विधवाएँ रह सकें। यदि कोई शोषित गर्भवती हो तो बच्चे को जन्म दे सके। 

  अब तीसरा अहम खुलासा--

 सावित्रीबाई पर जातीय भेदभाव के भी आरोप लगाए गए, ख़ासकर ब्राह्मणों द्वारा काफ़ी अपमानित किया गया।

 इसी संदर्भ में एक अहम बात जो शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि यशवंत फुले उनके 'दत्तक पुत्र' थे..! जी हाँ-- यशवंत वास्तव में एक 'विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई' के पुत्र थे। ये महिला सावित्रीबाई को रास्ते में बच्चे की प्रसूति के लिए तड़पती हुई मिली तो वे उसे आश्रम ले आईं जहाँ काशीबाई ने पुत्र को जन्म दिया। 

 काशीबाई के पुत्र को फुले दंपति ने गोद लेकर अपना नाम दिया था और उन्हें पढ़ा-लिखाकर चिकित्सक बनाया। इस प्रसंग से यह प्रमाणित हो जाता है कि फुले दम्पति सभी जाति व धर्म को साथ लेकर चलने वाले थे न कि किसी जाति या धर्म विशेष को। 

यहाँ एक और दिलचस्प बात बताते चलें कि फुले दम्पति ने अपने दत्तक पुत्र डॉ. यशवंत राव फुले का अन्तर्जातीय विवाह करवाया। भारतीय इतिहास में यह 'प्रथम अन्तर्जातीय विवाह' के रूप में जाना जाता है।



Pseudo feminism को आईना दिखाते हैं सावित्रीबाई के कार्य


 जी हाँ... महिला दिवस (8 मार्च) पर देशभर में अनगिनत संस्थाएँ "कुछ गिनी-चुनी" महिलाओं को सम्मानित करती नज़र आती हैं, (कुछ तो इसके एवज़ में अच्छी-खासी रकम भी लेते हैं !)... क्या ये वाकई समाजसेविका हैं?? क्या इन्होंने हक़ीकत में महिलाओं के हित के लिए लंबे समय तक याद रखे जाने वाले कार्य किये हैं? क्या ये समाज मे वर्तमान में महिलाओं व मासूम बच्चियों पर होने वाले बलात्कारों को किसी हद तक रोक पाई हैं ?

पिछले वर्ष Google ने कुछ इस तरह सलाम किया था इस महान महिला को--


क्या आपको नहीं लगता कि महिलाओं व दलितों के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली ऐसी महान महिला की आज समाज को फिर ज़रूरत है ?


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हिमा अग्रवाल


मीडिया केसरी

संस्थापक एवं एडिटर-इन-चीफ

7232083438


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4 Comments

  1. बहुत अच्छी जानकारी दी हिमा। साधुवाद है तुम्हें

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  2. ज्वलंत सवालों को उद्घृत करता बेहतरीन लेखन।
    साधुवाद

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  3. शानदार चित्रण, सामाजिक क्रांति और शिक्षा के प्रणेता माता फुले को कोटिश प्रणाम ✍️🇮🇳🙏

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