🖋️एनकाउंटर !
...एक मिशन !!
जुर्म के खिलाफ !!!
जाने कहाँ से ये टपके.. तथाकथित पत्रकार बन पत्रकारिता में लपके !
डॉ. सैयद मोईनुल हक़ ✍🏻
Media Kesari (मीडिया केसरी)
पिछले दिनों बेटी को एक कार्यक्रम में सम्मानित किया जाना था, बेटी के बैहद इसरार करने पर मैं भी साथ चला गया। वहां मेरी भूमिका एक पत्रकार की नहीं बल्कि एक परिजन की थी। जब होटल में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा तो पत्रकार दीर्घा में कई अनजान चेहरे बैठे थे। मैं तो एक पत्रकार नहीं बल्कि पिता था तो दर्शक दीर्घा में बेटी के साथ बैठ गया।
कुछ ही देर में कार्यक्रम शुरू हुआ। इसी दौरान पत्रकारों के हुलिए में लगभग एक दर्जन लोग कैमरे, मोबाइल, माइक आईडी आदि लिए उठे और आयोजकों व अतिथियों के इंटरव्यू लेने लगे। पत्रकारनुमा इन लोगों ने बाकायदा किसी ने डायरी ले रखी थी, किसी ने कैमरा, किसी ने माइक आईडी तो किसी ने पत्रकारिता का कार्ड लटका रखा था। प्रथम दृश्या यह पूरी तरह पत्रकार ही नजर आ रहे थे लेकिन मेरी ताजा जानकारी के अनुसार यह लोग पत्रकार नहीं थे। चलता प्रोग्राम रुकवा कर ये लोग आयोजकों व अतिथियों के बाइट लेने लगे। आयोजक व अतिथि भी बड़े शौक से अपने वक्तव्य देने लगे और उनके दौरान लगभग पौन घंटा निकल गया, फिर कार्यक्रम विधिवत चलने लगा।
बाद में ये लोग अति विशिष्ट अतिथियों की टेबलों पर आकर बैठ गए और बिल्कुल हाईटेक व आधुनिक पत्रकारों के जैसा आचरण करने लगे। बिल्कुल वही भाषा शैली, वही स्टाइल, वही वोकैबलरी का इस्तेमाल और वही बातें जो आमतौर पर पत्रकार करते हैं। बाइट से लेकर हेडिंग, कॉलम, फ़ाइल और प्रिंट तक की सभी तरह की बातें करते नजर आए। मेजबान भी इन को पूरी तवज्जो देते हुए खूब खातिर कर रहे थे। मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया कि आप लोग कौन हैं तो मेरा भी इंटरव्यू लेने लगे जब उनसे उनके बैनर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अलग-अलग बैनर भी बताएं, कुछ वास्तविक पत्रकार भी वहां पर मौजूद थे। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह भी इनको नहीं जानते लेकिन ये और इन जैसे लोग लगभग हर कार्यक्रम में नजर आते है।
मेरे अंदर का पत्रकार जाग उठा और शुरुआती जानकारी हासिल करने पर ही पता चला कि इन तथाकथित पत्रकारों का किसी भी अखबार, न्यूज़ चैनल तो दूर की बात यूट्यूब चैनल तक से कोई वास्ता नहीं था। फिर भी वो न केवल पत्रकारों की तरह यहां डटे हुए थे बल्कि बाकायदा अपनी पत्रकारिता का रुतबा दिखाते हुए जमकर रौब गांठ रहे थे। क्योंकि मैं उन से अनभिज्ञ था तो उन्होंने मेरा इंटरव्यू लेने का भी प्रयास किया लेकिन मैंने विवषता जताते हुए हाथ जोड़ दिये तो मुझे माफी मिल गई।
इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। इस दिशा में मैंने बहुत चिंतन, मनन, अनुसंधान, तफ्तीश, जांच सब कुछ किया तो पता चला कि शहर में होने वाले कई कार्यक्रमों में इस तरह के 'पत्रकारों' का गिरोह सक्रिय रहता है, जो अपना मायाजाल बिछा देता है। खास बात यह कि आयोजन को भी वास्तविकता का पता नहीं होता है। बात की गहराई में जाने पर यह भी पता चला कि यह लोग बाकायदा इस काम के लिए अपना पैकेज बता कर अच्छा खासा पैसा भी वसूल करते है।
अब इनको अगर *पत्रकारिता के लपके* ना कहें तो और क्या कहें ? अब तक पर्यटन के क्षेत्र में इस तरह के लोगों का बोलबाला ही नहीं बल्कि आतंक था और गाइड के नाम पर लपकों ने ऐसे कारनामो को अंजाम दिया कि पर्यटन व्यवसाय की चूले तक हिला कर रख दी। अब पत्रकारिता भी उससे अछूती नहीं नहीं रही बल्कि यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पत्रकारिता के इन लपकों ने पत्रकारिता को अपने शिकंजे में जकड़ लिया है और काफी हद तक पत्रकारिता का मूल स्वरूप भी बदल दिया है।
वास्तविकता की पुष्टि करने के लिए इसके बाद भी मैं ऐसे कई कार्यक्रमों में गया तो इसी तरह के लपकों की जबरदस्त सक्रियता को देखा और इनके आतंक को बहुत करीब से महसूस किया। इनकी सक्रियता इतनी जबरदस्त है और मायाजाल इतना मजबूत है कि कोई साधारण पत्रकार इसको भेद भी नहीं सकता और आयोजक तो इन्हीं लपकों को असली मीडिया समझते हैं। यह लोग खबरें कहां देते हैं ? कैसे देते हैं ? ये ठीक से नहीं समझ पाया लेकिन कभी कभार इन की खबरें प्रकाशित और प्रसारित भी होती है। यह एक अनुसंधान का विषय है। लगता है कि हमारे ही कुछ साथी पत्रकार भी उनके साथ मिले हुए हैं जो पर्दे के पीछे से इनको सहयोग करते है।
व्हाट्सएप में मीडिया के कुछ ग्रुप में इस तरह के लपके भी सक्रिय हैं जो बाकायदा आयोजनों की सूचनाएं भेजते हैं, फिर आयोजन की जानकारी भेजते हैं और फिर आयोजन की खबरें में प्रेषित करते हैं। इस तरह लपकों का समानान्तर नेटवर्क डवलप हो गया है जो मूल पत्रकारिता को न केवल डिस्टर्ब कर रहा है बल्कि दशा और दिशा भी बिगाड़ रहा है। पत्रकारिता के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए इस नेटवर्क का पूरी तरह से पर्दाफाश करके इसे ध्वस्त करना अति आवश्यक है।
फिलहाल इतना ही लेकिन जारी रहेगा ।
7 Comments
पूरा पढ़ा मैंने।
ReplyDeleteबहुत सटीक और खरी बात कही आपने। जोधपुर लिहाज का शहर है जिसका फायदा यह नकली मीडिया माफिया उठा रहा है। डॉक्टर साहब ने बहुत सही मुद्दा उठाया।
✅💐
लपकों से दिल्ली भी त्रस्त है।
Excellent
ReplyDeleteपत्रकारिता के इतने बड़े हस्ताक्षर डॉ.
ReplyDeleteअख़लाक़ अहमद उस्मानी और मेरे गुरु जनाब इजहार साहब की एक टिप्पणियां मेरे लिए प्रमाण पत्र है कि मैंने कुछ गलत नहीं लिखा।
हौसला अफजाई के लिए दिल की गहराइयों से आपका शुक्रिया।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteपहले केवल पर्यटकों के आस पास ही लपकों के भटकने की बातें सामने आती थी लेकिन वर्तमान में पत्रकारिता के घिरते स्तर ने इसमें भी लपकों की एंट्री के बाद इसमें अंबार सी लग गई हैं, यह आलेख इसका अच्छा उदाहरण हैं । आलेख के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteडॉ. मोइनुल हक़ साहब,बहुत ही बेबाक़ी, सहजता और सरलता से "पत्तलकारों" की बखिया उधेड़ी है।सच को बहादुरी से बयां करने का आपका अन्दाज़ निराला है।
ReplyDeleteJust Superb👍👍👍 आगे रहने के लिये दम होना चाहिये, जो आप में भरपूर है।,👌👌👌