अशोक गहलोत के अलावा कोई फेस नहीं है राजस्थान में !

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जिन लोगों को कांग्रेस का "क" भी पता नहीं, वे नगर अध्यक्ष मनोनीत कर दिए गए !

Media Kesari

Jaipur (Rajasthan)


दिल्ली के AICC मुख्यालय पर आज कांग्रेस की बहु-प्रतीक्षित बैठक (AICC Meeting) संपन्न हो गई। जो अपेक्षा थी अथवा प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जो कयास लगाए थे, वैसा कुछ नहीं हुआ। एक लाईन का संदेश इस मीटिंग के बाद प्रसारित हुआ कि राजस्थान के सभी कांग्रेस-जन एक हैं तथा अगला विधानसभा चुनाव एकता से लड़ेंगे। इसी के समानांतर राहुल गांधी ने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के काम-काज को सराहा तथा विश्वास जताया कि राजस्थान में कांग्रेस फिर से सरकार बनाने जा रही है।

दिल्ली के AICC मुख्यालय पर आज कांग्रेस की बहु-प्रतीक्षित बैठक संपन्न हो गई। जो अपेक्षा थी अथवा प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जो कयास लगाए थे, वैसा कुछ नहीं हुआ। एक लाईन का संदेश इस मीटिंग के बाद प्रसारित हुआ कि राजस्थान के सभी कांग्रेस-जन एक हैं तथा अगला विधानसभा चुनाव एकता से लड़ेंगे। इसी के समानांतर राहुल गांधी ने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के काम-काज को सराहा तथा विश्वास जताया कि राजस्थान में कांग्रेस फिर से सरकार बनाने जा रही है।

यहां महत्वपूर्ण विश्लेषण वाली बात यह है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के अलावा एक भी फेस ऐसा नहीं है, जिसकी जन-स्वीकार्यता प्रदेश भर में मतदाताओं के बीच तथा कांग्रेस जनों के बीच विश्वसनीयता हो। अतः प्रचार के लिहाज से अशोक गहलोत अकेले पड़ रहे हैं। यूं दिल्ली से प्रियंका गांधी व राहुल गांधी भी राजस्थान में प्रचार के लिए आयेंगे, लेकिन उनकी मांग छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश, तेलंगाना-मिजोरम मे भी रहेगी। मध्य अक्टूबर बाद चुनाव सभाओं-रैलियों का दौर रहेगा, जो 45-48 दिन चलेगा। पांच राज्यों में चुनाव हैं, अतः राजस्थान के हिस्से राहुल-प्रियंका गांधी के अधिकतम 10-10 दिन व 25-25 जनसभाएं-रैलियां (मिलाकर 50 स्थानों पर) हो सकती हैं। बाकी 150 या अधिक स्थानों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अकेले ही संभालना होगा, जो कि उनकी सेहत देखते हुए भारी दबाव वाला काम रहेगा।


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ऐसे में कमी नजर आती है राजस्थान में जन-जन के बीच भरोसा व कनेक्ट रखने वाले नेताओं की। एक दौर था जबकि कांग्रेस मे राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रभावशाली नेता होते थे और राजस्थान में भी दस से अधिक ऐसे नेता थे, जिनका बड़ा राजनीतिक वजूद था और विभिन्न इलाकों से प्रचार के लिए उनकी मांग आती थी। दिल्ली-जयपुर के मिलाकर 20-25 नेताओं की रैलियां-जनसभाएं सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों के 500 से अधिक स्थानों पर होती थी। लेकिन अब सच्चाई यह है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में राहुल-प्रियंका गांधी के अलावा कोई फेस नहीं है, जिसकी चुनाव को देखते हुए पब्लिक डिमांड हो। रही बात राजस्थान की यहाँ अशोक गहलोत के अलावा कोई रिलायबल फेस नहीं है।


यहां महत्वपूर्ण विश्लेषण वाली बात यह है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के अलावा एक भी फेस ऐसा नहीं है, जिसकी जन-स्वीकार्यता प्रदेश भर में मतदाताओं के बीच तथा कांग्रेस जनों के बीच विश्वसनीयता हो। अतः प्रचार के लिहाज से अशोक गहलोत अकेले पड़ रहे हैं। यूं दिल्ली से प्रियंका गांधी व राहुल गांधी भी राजस्थान में प्रचार के लिए आयेंगे, लेकिन उनकी मांग छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश, तेलंगाना-मिजोरम मे भी रहेगी। मध्य अक्टूबर बाद चुनाव सभाओं-रैलियों का दौर रहेगा, जो 45-48 दिन चलेगा। पांच राज्यों में चुनाव हैं, अतः राजस्थान के हिस्से राहुल-प्रियंका गांधी के अधिकतम 10-10 दिन व 25-25 जनसभाएं-रैलियां (मिलाकर

यूं सचिन पायलट समर्थक सवाल उठा सकते हैं कि सचिन पायलट क्यों नहीं? इसका स्पष्ट जवाब यह है कि मानेसर कांड, जयपुर शहीद स्मारक पर धरना, जनसंघर्ष यात्रा और उसके समापन पर आयोजित सभा में कांग्रेस को जिस तरह कोसा गया, इन सबको देखते हुए सचिन पायलट पर राजस्थान के तमाम निष्ठावान व समर्पित कांग्रेस-जनों का भरोसा नहीं रहा, तो आम मतदाता दूर की बात है।


बहरहाल यह स्थिति चिंताजनक है। राजस्थान की कांग्रेस को जिस तरह का ईमानदार नेतृत्व चाहिए, वह अब मुख्यधारा वाले कांग्रेस नेताओं मे नहीं दिख रहा। यह कहने मे कोई परहेज़ नहीं है कि अधिकतर नेताओं ने कांग्रेस को नहीं बल्कि खुद को निहाल किया है। ऐसे लोगों के कृत्यों से ही राजस्थान की कांग्रेस आज अशोक गहलोत के अलावा नेतृत्व-विहीन नजर आती है। यही वजह रही कि राजस्थान में अपनी सरकार होने के बाद भी कांग्रेस का वर्कर उत्साहित नहीं है, इसीलिए सचिन पायलट समेत कांग्रेस के 29 नेताओं ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार फिर से बनने का आज जो दावा किया है वह बहुत टफ टास्क है। बहुत कठिन है डगर पनघट की...क्योंकि राजस्थान कांग्रेस मे संगठन का ढांचा ध्वस्त पड़ा है। जिले से लेकर बूथ लेवल तक 2% कमेटियां भी सक्रिय नहीं हैं। जिन लोगों को कांग्रेस का "क" भी पता नहीं, वे नगर अध्यक्ष मनोनीत कर दिए गए। बिना संगठन के सब हवाई-प्लान व ख्याली पुलाव हैं।

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