सांभर को जिला नहीं बनाया तो दिक्कत संभव
By - कैलाश शर्मा ✍🏻
(वरिष्ठ पत्रकार)
जयपुर
Media Kesari
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (CM Bhajan Lal Sharma) का राजनीतिक भविष्य एक फैसले पर निर्भर हो गया और अब देखने वाली बात यह है कि डेस्टिनी क्या चाहती है।
विधानसभा उपचुनाव हो गये हैं, जिन सात सीटों पर चुनाव हुए हैं वहां भाजपा के पास एकमात्र सीट सलूंबर थी। पर जो संकेत मिल रहे हैं उस हिसाब से भाजपा को 4-5 सीटों का इजाफा हो रहा है। कहने या दिखाने के लिए भजनलाल की यह बड़ी उपलब्धि हो सकती है। उपचुनाव के जरिए भाजपा की सीटों की संख्या 120 के करीब पहुंच रही है।
सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि उपचुनाव में अच्छी जीत के बाद भजनलाल का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित है।
पर राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं है और जो दिखता है वह होता नहीं है। भजनलाल ने 11 माह से अधिक समय के कार्यकाल में इतने पंगे ले लिए कि भाजपा राजनीति में उनके प्रतिस्पर्धियों की संख्या न केवल बढ़ गई है बल्कि उन्हें हटाकर खुद काबिज होने की मंशा एक दो नहीं दस से अधिक लोगों में जागृत हो गई है। प्रहार भी प्रारंभ हो गये हैं।
इस स्थिति में भजनलाल को तय करना है कि वे जयनारायण व्यास, जगन्नाथ पहाड़िया व हरिदेव जोशी की तरह अल्पकालिक मुख्यमंत्री रहना चाहते हैं या पूरे पांच साल राज करने के इच्छुक हैं। प्रतिस्पर्धियों के प्रहारों से केवल एक ही फैसला उनकी रक्षा कर सकता है और वह है सांभर को जिला बनाना।
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इस तरह मुख्यमंत्री भजनलाल का राजनीतिक भविष्य सांभर को जिला बनाने के फैसले पर निर्भर है। वे दूदू, जयपुर ग्रामीण और जोधपुर ग्रामीण को जिला बनाने के फैसले को उलट सकते हैं, यह संकेत जानकार सूत्र दे रहे हैं। यह करना प्रासंगिक भी था, क्योंकि तीनों ही अधकचरे फैसले थे, निरस्त हो जायें तो राहतकारी रहेंगे।
पर महत्वपूर्ण है सांभर को जिला बनाना। अब तक जितने भी मुख्यमंत्री आये हैं, उनमें से अधिकतर सांभर को जिला न बनाने के कारण एक साल के भीतर ही मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था।
सबसे पहले जयनारायण व्यास से 1954 में सांभर को जिला बनाने की मांग की गई थी, नहीं बनाया तो वे 6 माह में ही हट गये। मोहनलाल सुखाडिया ने भी 1970 के आसपास टालमटोल की, तो इंदिरा गांधी जी ने मैसूर का राज्यपाल बना कर भेज दिया अर्थात् मुख्यमंत्री नहीं रहे।
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1979 में जनता पार्टी शासन में भैरोंसिंह शेखावत के समय फिर यह आवाज उठी, लेकिन नहीं बनाया, नतीजा जनता पार्टी हार गई और राजस्थान में भी सरकार बदल गई।
1984 में शिवचरण माथुर से आग्रह किया तो उनकी भी मनाही आ गई, नतीजा वे भी बदल दिए गए।
1987 में हरिदेव जोशी से विनती की गई, उन्होंने देख लेंगे वाले अंदाज में जवाब दिया तो जनवरी 1988 में वे भी विदा हो गए।
1998 में भैरोंसिंह शेखावत से पुनः आग्रह किया, लेकिन उनका दृष्टिकोण सकारात्मक नहीं था। हश्र यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में भाजपा 33 सीटों पर अटक गई। फिर लंबे समय शांति रही, 2012-13 में सांभर से एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिला, लेकिन कागज लेकर रख लिया। नतीजा कांग्रेस विधानसभा चुनाव में 21 सीटों पर सिमट गई।
2017-18 में वसुंधरा राजे से बड़ा डेलीगेशन मिला, उन्होंने भी फैसला नहीं लिया, नतीजा 2018 में उनकी सरकार चलती बनी।
2023 में अशोक गहलोत ने 19 जिले बनाये, लेकिन सांभर को दरकिनार किया तो विधानसभा चुनाव में वे भी बहुमत नहीं ला पाए।
अब गेंद भजनलाल के पाले में है। अगर वे सांभर को जिला बनाने की घोषणा कर देते हैं तब तो संभव है कि पूरे पांच साल राज कर लें, लेकिन नहीं बनाते हैं तो इस वर्तमान कार्यकाल के दौरान बीच में हटाए जा सकते हैं।
सांभर चूंकि वाराणसी और उज्जैन के बाद उत्तर पश्चिम भारत की तीसरी बड़ी पवित्र नगरी है। श्री कृष्ण की कुलमाता देवयानी तीर्थ वाली। इसके साथ आजादी से अब तक अन्याय हुआ है।
भजनलाल से न्याय की उम्मीद है, शेष समय बताएगा।
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