क्या सचिन पायलट फिर बन रहे हैं पीसीसी चीफ ?

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RPCC New Chief

Is Sachin Pilot returning as PCC Chief?

इस कप्तानी के फैसले पर निर्भर है राजस्थान कांग्रेस और देश का भविष्य 


कैलाश शर्मा ✍🏻

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं) 

दिल्ली से खबर है कि सचिन पायलट (Sachin Pilot) फिर से राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। वर्ष 2025 की पहली तिमाही में इस आशय की घोषणा कभी भी हो सकती है, ऐसे संकेत हैं। खुद सचिन पायलट भी राजस्थान कांग्रेस में वैक्यूम तथा एआईसीसी (AICC) में अपने कनेक्ट का लाभ उठा कर इस पद तक पहुंच रहे हैं, यह बात राजनीतिक हलकों में टाक आफ द मोमेंट है।

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सचिन पायलट मूल राजस्थान के नहीं हैं, न उनका जन्म राजस्थान में हुआ और न यहां की स्कूलों कालेजों में वे पढ़े। हां उनके पिता राजेश पायलट 1980 लोकसभा चुनाव में भरतपुर से, फिर 1984, 1991, 1996 में दौसा से सांसद बने थे। बाद में उनकी मां रमा पायलट भी दौसा से सांसद बनी थी। सचिन पायलट का राजस्थान की राजनीति में प्रवेश दौसा से सांसद के तौर पर हुआ, फिर वे 2009 में अजमेर से सांसद बने। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में वे अजमेर लोकसभा क्षेत्र से पराजित हो गए थे।


जनवरी 2014 में वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे और मानेसर प्रवास के दौरान जुलाई 2020 में हटा दिए गए।  उनके समर्थकों की भावना थी कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन कांग्रेस विधायक दल में उनके लिए बहुमत न होने के कारण वे इस मंजिल पर नहीं पहुंच पाये।


कांग्रेस के राजनीतिक परिदृश्य में उनके चार कृत्य दिलचस्प रहे--

 पहला अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को संकट में डालने के क्रम में 19 विधायकों का मानेसर प्रवास। फिर राजस्थान की कांग्रेस सरकार के खिलाफ गवर्नमेंट होस्टल पर धरना व  NH8 पर पदयात्रा, भांकरोटा में राजस्थान की कांग्रेस सरकार के खिलाफ रैली और उसमें हेमाराम चौधरी द्वारा कांग्रेस को कोसना, फिर विधानसभा चुनाव में उनके समर्थकों द्वारा किए गए दिलचस्प प्रयास। ये सब पब्लिक डोमेन में दृष्टिगत हैं।

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टोंक से दूसरी बार विधायक बने हैं। राजस्थान में भाजपा सरकार के खिलाफ अभी तक उनकी ओर से कोई अभियान दृष्टिगत नहीं हुआ है, हालांकि औपचारिक जुबानी जमा-खर्च मीडिया के सामने बयानों के जरिए दिखाया जाता रहा है। 


उनके समर्थकों का मानना है कि सचिन पायलट के राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद वे भाजपा की प्रदेश सरकार के खिलाफ बड़ा अभियान खड़ा कर सकते हैं। होगा क्या यह भविष्य के गर्भ में है। 


बहरहाल कांग्रेस के नये मुख्यालय से उनका नाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए गतिशील हो सकता है, यह बड़ी चर्चा है। इसके बाद राजस्थान की कांग्रेस राजनीति का क्या परिदृश्य होगा, वह सबसे अधिक चिंतनीय व विचारणीय स्थिति है। क्योंकि तब राजस्थान की कांग्रेस दो समूहों में विभाजित होती दिखेगी, एक तरफ वे जो कांग्रेस के प्रति सतत समर्पित व निष्ठावान हैं तथा दूसरी तरफ वे जो खुद भी कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार को संकट में डालने का काम करते रहे हैं तथा कांग्रेस विरोधियों व अवसरवादियों को कांग्रेस में जंप दिलाते रहे हैं। 


राजस्थान कांग्रेस की फ्रंटलाइन में अशोक गहलोत के अलावा और कोई भरोसेमंद नाम है नहीं। सवाल यह है कि कांग्रेस के प्रति निष्ठावान व समर्पित साथियों के हितों की वे कितनी रक्षा कर पाते हैं। विधानसभा चुनाव टिकट वितरण के दौरान  अशोक गहलोत सरेंडर मोड में अधिक नजर आए और इसका फायदा उठाकर सचिन पायलट अपने अनेक चहेतों को टिकट दिलवाने में कामयाब हो गए। तभी कांग्रेस बहुमत तक नहीं पहुंच पाई। बहुमत तो 2018 विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते भी नहीं मिला था, वह तो अशोक गहलोत का राजनीतिक प्रबंधन था जो सरकार बना ली। 


सचिन पायलट अगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति यूपी, बिहार व पश्चिमी बंगाल जैसी न हो जाए, यह चिंता कांग्रेस जनों को सताने लगी है। बाकी फैसला राहुल गांधी के हाथ है, वे राजस्थान में कांग्रेस के निष्ठावान व समर्पित जनों की भावनाओं का सम्मान करते हैं या यूपी, बिहार व पश्चिमी बंगाल जैसे हाल बनने की ओर धकेलते हैं। व्यवहारिक सच यह है कि देश में कांग्रेस सबसे अधिक मजबूत राजस्थान में है, सबसे अधिक संभावना राजस्थान में है, लेकिन राजस्थान कांग्रेस की कप्तानी सक्षम, ईमानदार व निष्ठावान हाथ में हो तभी यहां के 60 लाख कांग्रेस विचारक परिवार भाजपा को नेस्तनाबूद कर सकते हैं। इस कप्तानी के फैसले पर राजस्थान कांग्रेस और देश का भविष्य निर्भर है।

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