" जन-मन के सारथी"
-- माला मंत्री
पुकार रही मां भारती हे जन-मन के सारथी
दानवीर, कर्मवीर-योद्धाओं वीर जननी के कर्मठ जोधाओं
मन में जो ठानी है मात न हमको खानी है
रात-दिन एक कर देंगे खदेड़ के ही तुम्हें चैन लेंगे
सीमा पर हो या वक्षस्थल पर आंच जब भी आई है
शत्रु ने आंख उठाई तो मात उसी ने खाई है
जान है तो जहान है धन-दौलत कुर्बान है
शांति का चमन है वरना आंधी और तूफान है
सजग प्रहरी बन खड़े हुए हैं मुश्तैदी सब दिखा रहे है
उन्हें सबक भी सीखा रहे हैं गुस्ताखी जो कर रहे हैं
सीना फूल रहा है गर्व से देशवासियों के इस रूप से
अपनी परवाह किए बिना ही रात -दिन खड़े है एक पैर पे
प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री देश के सभी एक-एक मंत्री
कर्मवीर हो या दानवीर देवदूत बना है एक-एक संतरी(रक्षक)
अपना फर्ज निभा रहे हैं हरेक चिंता जता रहे हैं
ये कोई कपोल-कल्पना नहीं हकीकत है ये समझा रहे हैं
पहले जीवन सुरक्षित करलें दुनिया में सीट आरक्षित करलें
जिंदा रहे तो फिर मिल लेंगे गले लग व्यथा-कथा सुन लेंगे
जड़े हमारी अभी भी अपने संस्कारों से जमी हुई है
तभी देखो हर मुश्किल घड़ी एक दूजे से जुड़ी हुई है
धन्य-धन्य हे वीर योद्धाओं नमन तुम्हे हम करते हैं
दीर्घायु हो जीवन तुम्हारा दुआ सुमन अर्पित करते हैं
- माला
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