संदर्भ : यूपी में श्रमिक बसों के प्रवेश का प्रकरण
वरिष्ठ पत्रकार: महेश झालानी✍🏻
यूपी में बसों के प्रवेश में अड़ंगा लगाने तथा श्रमिकों को प्रताड़ित करने के सम्बंध में कांग्रेस पार्टी द्वारा शीघ्र ही यूपी सरकार के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करवाने के अलावा कानूनी कार्रवाई करने की युद्धस्तर पर तैयारी की जा रही है । एफआईआर संभवतया यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, चीफ सेक्रेटरी तथा परिवहन आयुक्त/सचिव के खिलाफ दायर की जा सकती है ।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव जुबेर खान ने यह जानकारी देते हुए बताया कि यूपी सरकार को श्रमिकों से कोई हमदर्दी नही थी । इसलिए सरकार ने राजस्थान से भेजी बसों को मिथ्या आरोप लगाकर यूपी बॉर्डर पर जबरन रोके रखा । यूपी सरकार ने आरोप लगाया कि बसों के जो नम्बर दिए गए थे, उनमें से कई नम्बर ऑटो रिक्शा, एम्बुलेंस, ट्रैक्टर तथा बाइक के थे ।
जुबेर खान ने बताया कि चूंकि यूपी सरकार श्रमिकों को राहत देने से कतरा रही थी, इसलिए उसने यह मनगढ़ंत आरोप लगाया । आज सारी बसों के नम्बर का सत्यापन कराया गया तो यूपी सरकार के आरोपों की पोल खुल कर रह गई । यूपी सरकार को सौंपे सभी नम्बर बसों के है । हेराफेरी कांग्रेस पार्टी ने नही, भाजपा की योगी सरकार ने की है । योगी सरकार ने संवेदनहीनता का परिचय देते हुए श्रमिकों की जिंदगी से खिलवाड़ किया है । महामारी के वक्त राजनीति करना निंदनीय ही नही, क्रूरता से कम नही है ।
हो सकता है कि योगी सरकार को कांग्रेस से एलर्जी हो । लेकिन मजदूरों से तो घृणा नही करनी चाहिए । यूपी सरकार द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि बसों की फिटनेस और ड्राइवरो के लाइसेंस नही है । जांच करने पर ज्ञात हुआ कि यूपी में 4 हजार से ज्यादा बस और वाहन सड़को पर धड़ल्ले से संचालित है । अवैध वाहनों की संख्या तो अनगिनत है ।
मान भी लिया जाए कि कुछ बसों की फिटनेस नही थी । केंद्र सरकार के आदेश अनुसार 31 मई तक ऐसे वाहनों को रोका नही जा सकता हैं । यूपी सरकार को चाहिए था कि वह बसों का फिजिकल वेरिफिकेशन करवाती । जो बसे फिट और सही होती, उनको तो रवाना किया ही जा सकता था । हकीकत यह है कि योग्गी सरकार नही चाहती थी कि कांग्रेस को किसी प्रकार का क्रेडिट मिले । इसलिये जानबूझकर कई तरह के अड़ंगे लगाए । अंततः योगी सरकार की तानाशाही और मनमानी के कारण बसों को बैरंग वापिस लौटना पड़ा ।
आपको बता दें कि जब दो राज्य सरकारों के बीच किसी मुद्दे पर विवाद होता है तो अंतरराज्यीय विवाद प्राधिकरण मामले में हस्तक्षेप कर आपस मे बातचीत के जरिये विवाद सुलझाता है । प्रधानमंत्री इस प्राधिकरण का अध्यक्ष होता है । 2017 के बाद प्राधिकरण की कोई बैठक नही हुई है ।
वरिष्ठ पत्रकार: महेश झालानी✍🏻
यूपी में बसों के प्रवेश में अड़ंगा लगाने तथा श्रमिकों को प्रताड़ित करने के सम्बंध में कांग्रेस पार्टी द्वारा शीघ्र ही यूपी सरकार के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करवाने के अलावा कानूनी कार्रवाई करने की युद्धस्तर पर तैयारी की जा रही है । एफआईआर संभवतया यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा, चीफ सेक्रेटरी तथा परिवहन आयुक्त/सचिव के खिलाफ दायर की जा सकती है ।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव जुबेर खान ने यह जानकारी देते हुए बताया कि यूपी सरकार को श्रमिकों से कोई हमदर्दी नही थी । इसलिए सरकार ने राजस्थान से भेजी बसों को मिथ्या आरोप लगाकर यूपी बॉर्डर पर जबरन रोके रखा । यूपी सरकार ने आरोप लगाया कि बसों के जो नम्बर दिए गए थे, उनमें से कई नम्बर ऑटो रिक्शा, एम्बुलेंस, ट्रैक्टर तथा बाइक के थे ।
जुबेर खान ने बताया कि चूंकि यूपी सरकार श्रमिकों को राहत देने से कतरा रही थी, इसलिए उसने यह मनगढ़ंत आरोप लगाया । आज सारी बसों के नम्बर का सत्यापन कराया गया तो यूपी सरकार के आरोपों की पोल खुल कर रह गई । यूपी सरकार को सौंपे सभी नम्बर बसों के है । हेराफेरी कांग्रेस पार्टी ने नही, भाजपा की योगी सरकार ने की है । योगी सरकार ने संवेदनहीनता का परिचय देते हुए श्रमिकों की जिंदगी से खिलवाड़ किया है । महामारी के वक्त राजनीति करना निंदनीय ही नही, क्रूरता से कम नही है ।
हो सकता है कि योगी सरकार को कांग्रेस से एलर्जी हो । लेकिन मजदूरों से तो घृणा नही करनी चाहिए । यूपी सरकार द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि बसों की फिटनेस और ड्राइवरो के लाइसेंस नही है । जांच करने पर ज्ञात हुआ कि यूपी में 4 हजार से ज्यादा बस और वाहन सड़को पर धड़ल्ले से संचालित है । अवैध वाहनों की संख्या तो अनगिनत है ।
मान भी लिया जाए कि कुछ बसों की फिटनेस नही थी । केंद्र सरकार के आदेश अनुसार 31 मई तक ऐसे वाहनों को रोका नही जा सकता हैं । यूपी सरकार को चाहिए था कि वह बसों का फिजिकल वेरिफिकेशन करवाती । जो बसे फिट और सही होती, उनको तो रवाना किया ही जा सकता था । हकीकत यह है कि योग्गी सरकार नही चाहती थी कि कांग्रेस को किसी प्रकार का क्रेडिट मिले । इसलिये जानबूझकर कई तरह के अड़ंगे लगाए । अंततः योगी सरकार की तानाशाही और मनमानी के कारण बसों को बैरंग वापिस लौटना पड़ा ।
आपको बता दें कि जब दो राज्य सरकारों के बीच किसी मुद्दे पर विवाद होता है तो अंतरराज्यीय विवाद प्राधिकरण मामले में हस्तक्षेप कर आपस मे बातचीत के जरिये विवाद सुलझाता है । प्रधानमंत्री इस प्राधिकरण का अध्यक्ष होता है । 2017 के बाद प्राधिकरण की कोई बैठक नही हुई है ।
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