संदर्भ : श्रमिकों की आवाजाही से स्थिति विस्फोटक
Migrants turn to the Government for Respite
वरिष्ठ पत्रकार: महेश झालानी ✍🏻
मैंने पिछले दिनों एक पोस्ट डालकर प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही से उतपन्न संभावित खतरनाक स्थिति से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अनेक लोगों का ध्यान आकृष्ट किया था । सरकार तनिक भी इस ओर ध्यान देती तो आज मजदूर बेरहमी से ना तो कुचले जाते और न ही उनको बेहद कष्ट झेलना पड़ता । जितने लोग कोरोना से नही मरे, उससे ज्यादा श्रमिक सड़क हादसों में मृत्यु के शिकार हो जाएंगे ।
मैंने अंकित किया था कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित प्रधानमंत्री आदि को बारीकी से प्रवासियों की घर वापसी पर विचार करना चाहिए । वरना कोरोना से भी बड़ी महामारी उत्पन्न हो सकती है जिसको रोकना बेहद कठिन होगा । गहलोत जो कि मजदूरों को अपने अपने प्रदेश में भेजने के सबसे बड़े हिमायती है, को व्यवहारिक रूप से विचार करना होगा । अन्यथा जो ख्याति अशोक गहलोत ने अर्जित की है, वह स्वाहा होकर रह जायेगी । लोग गहलोत को सबसे बड़ा विलेन समझेंगे ।
आज कमोबेश हो भी यही रहा है । जो फ्लड गेट गहलोत ने खुलवाया है, उसके दुःखद परिणाम सामने आ रहे है । मजदूरों के बिना मशीनें पूर्णतया विश्राम कर रही है । झूठे आंकड़े पेश करना अफसरों का पेशा है । लेकिन हकीकत यही है कि दस फीसदी से ज्यादा फैक्टरियां चालू नही हो पाई ।
बकौल सरकार के राजस्थान से बाहर रह रहे दस लाख से ज्यादा लोगो ने घर वापसी के लिए पंजीयन कराया है । अनुमान है कि यह संख्या बढ़कर बीस लाख भी हो सकती है । इसी प्रकार बिहार के 30 लाख लोग घर जाने के लिए लालायित है । इसी तरह यूपी, झारखंड तथा पश्चिमी बंगाल के भी लाखों लोग घर वापसी की आस लगाए बैठे है । सवाल पैदा होता है कि ये लोग अपने घरों को जाएंगे कैसे ? अगर चले भी गए तो आएंगे कैसे ?
सभी जानते है कि राजस्थान में 70 फीसदी से ज्यादा कामगार बिहार, यूपी, पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड के है । इनमे से अधिकांश लोग रोते-धोते अपने गांव पहुंच गए है या पहुँचने की दिशा में अग्रसर है । लेबर के अभाव में फैक्ट्रियां कागजों में तो चालू है । लेकिन हकीकत में अपनी बेबसी पर आंसू बहा रही है । निर्माण कार्य पूरी तरह ठप्प हो चुका है तो औद्योगिक क्षेत्रों में मातम पसरा पड़ा है ।
मैंने माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पूछने की हिमाकत की थी कि राजस्थान में एकसाथ लाखो लोग आगये तो उनको रोजगार कैसे मुहैया कराओगे । जबकि राजस्थान में पहले से ही उद्योग धंधे चौपट पड़े है और बेरोजगारी चरम पर है । इस मुद्दे पर केंद्र व राज्य सरकार को विचार करना होगा कि यदि सारे बिहारी, बंगाली और यूपी वाले अपने प्रदेश को लौट गए तो राजस्थान की तरह अन्य प्रदेशों के उद्योग धंधों का क्या होगा ?
सभी जानते है कि 40 फीसदी से ज्यादा बिहारी, 30 फीसदी बंगाली तथा 10 फीसदी के करीब यूपी के श्रमिक कल-कारखानों, परिवहन, ढाबे, घरेलू कामकाज करते है । जानकर आश्चर्य होगा कि राजस्थान के फैक्टरी मालिक राजस्थानी लेबर के बजाय बिहारी या बंगालियों को अपने यहाँ रखना ज्यादा बेहतर समझते है । बकौल फैक्टरी मालिको के राजस्थानी लेबर कामचोर होने के अलावा यूनियन बनाने में ज्यादा दिमाग लगाती है । इसलिए राजस्थानियों को हाथ जोड़कर टरका दिया जाता है ।
मुख्यमंत्री ने लेबर एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज स्थापित करने का निर्देश दिया है । जोश में खोल तो दिया जाएगा । बाद में कागजों तक सीमित होकर रह जाने वाला है । प्रदेश पहले भी एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज जो केवल सफेद हाथी साबित हो रहे है । इन एक्सचेंज के जरिये किसी को रोजगार मुहैया नही हो रहा है । कमोबेश यही हाल लेबर एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंजों का होगा । यह मेरी भविष्यवाणी नही, दावा है ।
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