COVID Orphans- ठहरिए..! कहीं इस तरह आप अनजाने में मानव तस्करों की मदद तो नहीं कर रहे हैं..? 'सेव द चिल्ड्रन' संस्था ने जताई चिंता, अनाथ बच्चों को मुश्किल में न डालें प्लीज !

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अनाथ बच्चों की जानकारी ऑनलाइन साझा करने से बचें

अनाथ बच्चों की तस्करी और दुर्व्यवहार का हो सकता है खतरा


Child Helpline 1098 का करें प्रयोग


Media Kesari Digital Desk ✍🏻

जयपुर, 13 मई -  बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कार्य करने वाले NGO 'सेव द चिल्ड्रन' (Save the Children) ने भारत में कोविड-19 की वजह से अपने माता-पिता को खो देने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की है।

 सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरें साझा की जा रही हैं जिनमें अनाथ बच्चों (Orphan) को गोद लेने की भावुक अपीलें हैं। इस तरह की अपीलें बच्चों के मानव तस्करी (Human Trafficking) और दुर्व्यवहार (Abuse) की चपेट में आने की संभावना को बढ़ा देती हैं।

भारत में पिछले कुछ हफ्तों में कोविड-19 से होने वाली मौतों की एक रिकार्ड संख्या दर्ज की गई है। जहां एक ओर अपने माता-पिता को खो देने वाले बच्चे अपने रिश्तेदारों या अभिभावकों द्वारा संभाल लिए जाते हैं वहीं दूसरी ओर कुछ बच्चों को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, जिससे उन बच्चों की तस्करी का खतरा बढ़ जाता है।



सेव द चिल्ड्रन का लोगों से आग्रह है कि वे अनाथ बच्चों (Orphan) के बारे में कोई भी जानकारी ऑनलाइन साझा न करें और चाइल्ड हेल्प लाइन (Child Helpline) 1098 से संपर्क करें। 

साथ ही बच्चों को बाल तस्करी (Child Trafficking) का शिकार होने से बचाने के लिए सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करें। क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि इन अपीलकर्ताओं के रूप में किसी मानव तस्कर (Human trafficker) का चेहरा भी हो सकता है और इस तरह कहीं आप अनजाने में यह अपराध करने की भूल कर रहे हों। अतः किसी अनाथ बच्चे की यदि आपके पास कोई जानकारी है तो उसे ज़िम्मेदार व्यक्ति अथवा संस्था को ही साझा करें।

【 Child trafficking suspected behind pleas for adoption of Covid ‘orphans’

सोशल मीडिया पर साझा की गई एक पोस्ट इस प्रकार थी, “2 साल की बच्ची और 2 महीने का बच्चा, जिनके माता-पिता का कोविड के कारण निधन हो गया है। इन बच्चों को घर चाहिए। अगर आप या आपका कोई करीबी गोद लेना चाहता हो तो कृपया संपर्क करें …..”


एक जानकारी के अनुसार अवैध रूप से गोद लेने वालों से बचाने के लिए देश भर में अस्पतालों को यह निर्देश दिया गया है कि वे बीमार माता - पिता से घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करवाकर पुष्टि करें कि उनकी मृत्यु की स्थिति में उनके बच्चों को किसके पास भेजा जा सकता है।  




कुशल, उम्र 9 साल, और प्रीति 10, पहली बार सेव द चिल्ड्रन के पास मदद के लिए तब पहुंचे जब उनकी मां बुखार से पीड़ित थीं और इस बात का पता चला कि उन्हें कोविड-19 हुआ है। स्थानीय क्लिनिक में भर्ती होने और ऑक्सीजन मिलने के बावजूद उनका निधन हो गया। कुशल और प्रीति को स्थानीय प्रतिबंधों के कारण उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति नहीं मिली। उनके पिता काम के दौरान उनकी देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं और सामान्य रूप से स्कूल से मिलने वाले भोजन भी कोरोना की वजह से नहीं मिल रहा है जिसके अभाव में बच्चे भूखे ही रह रहे थे। ऐसे में सेव द चिल्ड्रन स्टाफ दोनों बच्चों की देखभाल की व्यवस्था कर रहा है। 


'सेव द चिल्ड्रन, भारत' के डिप्टी प्रोग्राम्स डायरेक्टर संजय शर्मा के अनुसार, “यह बच्चों के लिए अविश्वसनीय रूप से भ्रामक और कठिन समय है, खासकर उनके लिए जिन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया है। हर दिन हम केवल राजस्थान में बच्चों के लगभग 80 डिस्ट्रेस (संकट) कॉल प्राप्त करते हैं और हम चिंतित हैं कि चीजें और बदतर होती चली जाएंगी क्योंकि मरने वालों की संख्या में वृद्धि जारी है। 


जो बच्चे अपनी देखभाल करने वालों को खो देते हैं और अपने भाग्य के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं उनके शोषण और दुरूपयोग की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में हम उन्हें अवैध रूप से गोद लिए जाने और उनको तस्करी से बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं । 


सुरक्षा के तात्कालिक खतरे के अलावा हम उन बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर छाए संकट से भी चिंतित हैं। कई  बच्चों ने इस दौरान अपने माता-पिता को ऑक्सीजन या उचित चिकित्सा देखभाल के अभाव में तड़पते देखा  होगा जिसकी वजह से वे तनाव में हैं।


गरीब परिवारों के बच्चों को अपने परिवार की मदद करने के लिए काम भी करना पड़ सकता है, या छोटे भाइयों या बहनों की देखभाल करनी पड़ सकती है जिसका मतबल है कि उन्हें गरीबी के चक्र में फंसकर स्कूल छोड़ना होगा।“

 

सेव द चिल्ड्रन उन बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करता है जिन्होंने अपने माता-पिता को इस वायरस की वजह से खो दिया है। राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग (Rajasthan State Commission for Protection of Child Rightके सहयोग से संचालित की जा रही हेल्पलाइन पर हर दिन औसतन 80 कॉल आ रहे हैं। यह हेल्पलाइन मनेासामाजिक सहायता प्रदान करती है और उन बच्चों के मामलों को पुनर्निर्देशित करती है जिन्हें सही अधिकारियों के संरक्षण की आवश्यकता है। हेल्पलाइन पर अधिकतर 14 से 18 साल के बच्चों और माता-पिता के कॉल आते हैं।

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