Geet sangrah Vimochan Samaroh-अपने राजस्थानी गीतों का परचम देश-विदेश में लहराने वाले सरस गीतकार राजावत के नए गीत संग्रह "ल्यो सारो आकास संभाळो" का 16 अक्टूबर को होगा विमोचन

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शहर और प्रदेश के कवि एवं साहित्यकार करेंगे शिरकत


Media Kesari (मीडिया केसरी)

जयपुर

15 अक्टूबर,2022


जयपुर (राजस्थान) - राजस्थानी भाषा के पुरोधा एवं मीठे गीतकार कल्याण सिंह राजावत के नए गीत संग्रह "ल्यो सारो आकास संभालो" (lyo saro aakas sambhalo)का 16 अक्टूबर रविवार को चैम्बर भवन के भैरों सिंह शेखावत सभागार में सायं 4.00 बजे वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर हेतु भारद्वाज द्वारा विमोचन किया जाएगा।

वरिष्ठ कवि लोकेश कुमार सिंह साहिल ने आज यह जानकारी देते हुए बताया कि मित्र परिषद जयपुर द्वारा आयोजित इस विमोचन समारोह की अध्यक्षता राजस्थानी भाषा के विशेषज्ञ कल्याण सिंह शेखावत करेंगे। उन्होंने बताया कि दूरदर्शन के पूर्व निदेशक एवं साहित्यकार कृष्ण कल्पित विशिष्ट अतिथि तथा राजस्थानी भाषा के कवि भागीरथ सिंह भाग्य अतिथि विशेष होंगे।

वरिष्ठ कवि लोकेश कुमार सिंह साहिल ने आज यह जानकारी देते हुए बताया कि मित्र परिषद जयपुर द्वारा आयोजित इस विमोचन समारोह की अध्यक्षता राजस्थानी भाषा के विशेषज्ञ कल्याण सिंह शेखावत करेंगे। उन्होंने बताया कि दूरदर्शन के पूर्व निदेशक एवं साहित्यकार कृष्ण कल्पित विशिष्ट अतिथि तथा राजस्थानी भाषा के कवि भागीरथ सिंह भाग्य अतिथि विशेष होंगे।  साहिल ने बताया कि इस भव्य विमोचन समारोह में शहर और प्रदेश के कवि एवं साहित्यकार शिरकत करेंगे। #mediakesari  #pustakvimochansamarohnews पुस्तक विमोचन समारोह की खबरें jaipur ki taza khabar


 साहिल ने बताया कि इस भव्य विमोचन समारोह में शहर और प्रदेश के कवि एवं साहित्यकार शिरकत करेंगे।


  वरिष्ठ कवि लोकेश कुमार सिंह साहिल ने एक रोचक  किस्से का ज़िक्र करते हुए गीतकार राजावत  के साहित्यिक सफ़र के बारे में कुछ इस तरह बताया:--


बात नब्बे के दशक की है , उन दिनों हम लोक-विकास सामाजिक एवम सांस्कृतिक संस्थान के बैनर तले शिक्षा , साहित्य , पत्रकारिता और समाजसेवा के क्षेत्र की विभूतियों को प्रतिवर्ष सम्मानित किया करते थे ।


लोक-विकास पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार हैं  डॉ.ताराप्रकाश जोशी , डॉ.हरिराम आचार्य , श्री वीर सक्सेना ,डॉ.इन्दुशेखर , श्री कुमार शिव , डॉ.भगवत शरण चतुर्वेदी , श्री बुद्धिप्रकाश पारीक और श्री कल्याण सिंह राजावत ।


तब इस पुरस्कार की राशि पाँच हज़ार रुपये हुआ करती थी तथा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर अपने कर-कमलों से ये सम्मान प्रदान किया करते थे । समारोह में सम्मानित साहित्यकार का रचना-पाठ भी हुआ करता था ।


राजावत साहब का पहला रचना-संग्रह आरोहण पत्रिका में 1956 में ही प्रकाशित हो चुका था । उसके बाद 1962 में मिमझर और रामतिया मत तोड़ , 1966 में आ ज़मीन आपणी , 1968 में परभाती और 1990 में कुण कुण नै बिलमासी द्वारा उनकी प्रतिष्ठा में लगातार इज़ाफ़ा होता रहा     8 दिसम्बर 1939 को नागौर के चितावा गाँव में जन्मे कल्याण सिंह राजावत 2014 से ही लकवाग्रस्त हैं , न चल पाते हैं और न ही बोल पाते हैं । लेकिन उनकी जिजीविषा और स्नेहिल भंगिमा आज भी वैसी ही है ।


जिस वर्ष श्री कल्याण सिंह राजावत को लोक-विकास सम्मान से अलंकृत किया गया उस वर्ष का कल्याण सिंह जी का काव्य-पाठ तथा चन्द्रशेखर जी का उद्बोधन अद्भुत था । राजस्थानी भाषा की पूरी समझ न होने के बावजूद चन्द्रशेखर जी हर बढ़िया पंक्ति पर दाद दे रहे थे ।

कल्याण सिंह जी ने लगातार 5 गीत पढ़े । बागां बिच बेलड़ी पसरबा लागी , थोड़ी-थोड़ी प्रीत री मद पिया तो करो , काँकरी परबत होगी रे , आपां हेत करां और मालण फूल फूल रो मोल करणों चोखो कोनी ऐ


पूरा पाण्डाल चमत्कृत था , पूरे माहौल पर एक जादू सा तारी हो गया था । कल्याण सिंह जी के शब्द , उनके गीतों की धुन , उनके स्वर का आरोह-अवरोह एक अलौकिक अनुभूति का पर्याय बन चुके थे ।


चन्द्रशेखर जी ने अपने भाषण में कहा कि "काया ताता दूध सी उफनबा लागी" जैसी अनूठी , अनछुई और अप्रतिम उपमा संसार के किसी काव्य में पढ़ने-सुनने को नहीं मिलती । रस की निष्पत्ति कविता की बुनियादी शर्त है और इस कसौटी पर कल्याण सिंह बहुत बड़े कवि हैं ।


कल्याण सिंह जी ने ख़ूब पुरस्कार और सम्मान पाये , देश-विदेश की ख़ूब यात्राएँ कीं ।  कम्बोडिया , थाईलैंड , नेपाल सहित भारत के हर महानगर और हर दूरस्थ शहर , कस्बे व गाँव तक अपने राजस्थानी के गीतों का परचम पूरी शान से लहराया , ख़ूब शिष्य बनाये जिनका आज बहुत बड़ा नाम है और ख़ूब जमकर मदिरा-पान भी किया । मदिरा-पान के बाद उनके कण्ठ की मधुरता स्वतः ही बढ़ जाती थी । सोमरस के आशिक़ ये बेहतरीन कवि 35 बरस तक एक महिला विद्यालय में अध्यापक व प्राचार्य रहे लेकिन कभी भी कोई हल्की बात उनके बारे में सुनने को नहीं मिली । शराब का कोई अवगुण उन तक आने की हिम्मत ही नहीं कर पाया ।


राजावत साहब का पहला रचना-संग्रह आरोहण पत्रिका में 1956 में ही प्रकाशित हो चुका था । उसके बाद 1962 में मिमझर और रामतिया मत तोड़ , 1966 में आ ज़मीन आपणी , 1968 में परभाती और 1990 में कुण कुण नै बिलमासी द्वारा उनकी प्रतिष्ठा में लगातार इज़ाफ़ा होता रहा 


8 दिसम्बर 1939 को नागौर के चितावा गाँव में जन्मे कल्याण सिंह राजावत 2014 से ही लकवाग्रस्त हैं , न चल पाते हैं और न ही बोल पाते हैं । लेकिन उनकी जिजीविषा और स्नेहिल भंगिमा आज भी वैसी ही है ।


उनकी राजस्थानी की अप्रकाशित रचनाओं को उनकी सुयोग्य पुत्री कामना ने संकलित कर अथक मेहनत और लगन का परिचय दिया है । हिन्दी की रचनाएँ भी छपने की प्रक्रिया में हैं। 


राजस्थानी रचनाओं का यह संग्रह ल्यो सारो आकास संभालो नाम से राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति , श्री डूंगरगढ़ द्वारा छापा गया है ।


इसी महनीय पुस्तक का लोकार्पण मित्र-परिषद (मित्र-परिषद कल्याण सिंह जी के द्वारा ही शुरू की गयी संस्था है । मित्र-परिषद ने उस वक़्त महाकवि बिहारी सम्मान प्रदान करना आरम्भ किया था , जब बिड़ला जी के बिहारी पुरस्कार की परिकल्पना भी नहीं थी) द्वारा कल दिनांक 16 अक्टूबर 2022(रविवार) जयपुर के चैम्बर भवन में होने जा रहा है । समारोह में श्री कमल नयन काबरा , श्री कल्याण सिंह शेखावत , डॉ.हेतु भारद्वाज , श्री कृष्ण कल्पित , श्री भागीरथ सिंह भाग्य , श्रीमती अभिलाषा पारीक तथा स्वयं श्री कल्याण सिंह राजावत मंचासीन होंगे ।



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