Rajasthan Election 2023:- 51 वर्ष के इतिहास में दूसरी बार रिपीट हो सकती है Congress !

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गैंगमानेसर के फालोअर्स भी बन रहे ब्लॉक अध्यक्ष, Congress की ग्रासरूट पर सेवा करने वालों को भी मिले मौका


 कैलाश शर्मा ✍🏻

फुलेरा विधानसभा क्षेत्र

Media Kesari (मीडिया केसरी)

Jaipur


जी हां, विगत 51 वर्ष के दौरान अब तक हुए 11 विधानसभा चुनाव में केवल एक बार लगातार कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला था, 1985 में और एक बार 1993 मे भाजपा को.. वरना हर बार सत्ता परिवर्तन होता रहा है। जिस तरह के राजनीतिक हालात राजस्थान में हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि कांग्रेस यदि थोड़ा व्यवहारिक और नीतिगत सुधार कर ले, तो हर बार सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़कर लगातार रिपीट मे सरकार बना सकती है।


इतिहास


भारत-पाक युद्ध ( 1971) Indo-Pakistan War of 1971 के बाद राजस्थान में पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव मार्च, 1972 मे हुए थे। तब कांग्रेस को बहुमत मिला था। 

- पांच साल बाद 1977 मे जनता पार्टी की सरकार बनी और सत्ता परिवर्तन हो गया।

- तीन साल बाद 1980 मे जब चुनाव हुए तो कांग्रेस सत्ता में लौट आई।

- 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस रिपीट हुई।

- 1990 मे भाजपा को पहली बार और 1993 मे दूसरी बार रिपीट मे सत्ता मिली।

- लेकिन 1998 और उसके बाद 2003, 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में हर बार सत्ता बदलती रही।


Media kesari bebak kalam बेबाक कलम bebak बोल ashok gehlot v/s sachin pilot  Indo-Pakistani War of 1971 के बाद राजस्थान में पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव मार्च, 1972 मे हुए थे। तब कांग्रेस को बहुमत मिला था।   ऐसे में जरूरत इस बात की है कि जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्ष ऐसे लोगों को बनाया जाए, जिनके परिवार सतत कांग्रेस सेवा में गतिशील हैं। जो इलाके में कांग्रेस के पिलर कहे जाते हैं। जिन्होंने खुद तीन-चार दशक कांग्रेस की ग्रासरूट पर सेवा की हो। टोंक, भीलवाड़ा, नागौर, जयपुर शहर और जयपुर देहात समेत अनेक जिलों में ऐसे नाम हैं, जो भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की निगाह में छोटे/नगण्य हों, लेकिन मौका मिले तो बड़ा काम कर सकते हैं।   जिलाध्यक्ष चयन के लिए कांग्रेस के नीति निर्धारक एक फिल्टर जरूर लगायें कि विधायक, विधानसभा-लोकसभा चुनाव पराजित प्रत्याशी को नहीं बनाया जाए, बल्कि जो 2018 के विधानसभा व 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट से वंचित रह गए थे.. उन्हें जिलाध्यक्ष बनाया जाए।


अब


ताजा परिदृश्य यह है कि -

- राजस्थान की भाजपा 16 नेताओं की अनुगामी बन विभाजित हो चली है।

- भाजपा मे 16 से अधिक नेता मुख्यमंत्री पद के तलबगार हैं और सभी को लगता है कि अभी नहीं तो कभी नहीं.. इस कारण सब अपने आप को सुपर साबित कर शेष अन्य को कमजोर करने में जुटे हुए हैं।

- नतीजा भाजपा मे तमाम नेताओं का धरातल खिसका हुआ है और state level की लीडरशिप वहाँ है नहीं।

- ऐसे में कांग्रेस के लिए पुरजोर अवसर हैं सरकार रिपीट करने के लिए और तीन चौथाई से अधिक बहुमत हासिल करने के लिए।

- लेकिन इसे संभव करने के लिए कांग्रेस को structural & administrative reforms की जरुरत है।

- जिस तरह आर्थिक सुधारों का दौर शुरू कर डा. मनमोहन सिंह ने देश को आर्थिक विकास के नये मुकाम पर पहुंचाया और अमेरिका की (2007-8 से 2012-13) मंदी, जिसने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया था, उससे भारत अछूता रहा, ठीक उसी तरह structural reform राजस्थान की कांग्रेस के लिए जरुरी हो गया है।

- 2003 और 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इसलिए पराजित हुई थी कि विधायक निरंकुश हो गए थे और एंटी इनकमबैंसी कांग्रेस या अशोक गहलोत (@ashokgehlot51) के खिलाफ नहीं बल्कि विधायकों के खिलाफ थी।

- अभी 10 माह का समय है सभी विधायकों को निर्देश दिये जायें कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र में एक पूरा दिन एक बूथ एरिया में दें। उस बूथ एरिया में कांग्रेस को लीड कैसे मिले, इसका रोड़मैप बनाकर बूथ एरिया के कांग्रेस परिवारों को जिम्मेदारी दें। इससे विधायकों का घर-घर कनेक्ट बढ़ेगा और एंटी इनकमबैंसी भी समाप्त होगी।

- दो कड़े फैसले कांग्रेस को लेने होंगे

1. विगत विधानसभा चुनाव में पराजित किसी प्रत्याशी को टिकट न दिया जाए, क्योंकि उन्हें 2018 मे उपकृत किया जा चुका है। उनमें कंपीटेंसी नहीं थी, इसलिए हार गए.. हालांकि चार साल से कांग्रेस सरकार ने उन्हें विधायक तुल्य दर्जा दे रखा है, जिसका बेजा फायदा इन पराजितों ने "डिजायर" के जरिए उठाया है। इनमें से अधिकतर के खिलाफ एंटीइनकमबैंसी है। अगर इनमें से किसी को टिकट रिपीट किया तो कांग्रेस की पराजय तय है, अतः कांग्रेस इन पराजितों को टिकट देने से बचे।

2. सेवानिवृत्त प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों तथा दल-बदलू परिवारों को टिकट नहीं दिया जाए। वस्तुतः ये सेवानिवृत्त अधिकारी और दलबदलू नेता इलाके के समर्पित व निष्ठावान कांग्रेस जनों को ओवरटेक कर टिकट ले आते हैं, इलाके में स्वीकार्यता होती नहीं, इसलिए हार जाते हैं।


महत्वपूर्ण


अभी ब्लॉक अध्यक्षों की सूचियाँ जारी हो रही हैं। गैंगमानेसर के फालोअर्स भी बड़ी तादाद में ब्लॉक अध्यक्ष बने हैं। AICC का फैसला है, इसलिए No comments.. लेकिन निष्ठावान व ईमानदार कांग्रेस जनों को feel जरूर हो रहा है। 


ऐसे में जरूरत इस बात की है कि जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्ष ऐसे लोगों को बनाया जाए, जिनके परिवार सतत कांग्रेस सेवा में गतिशील हैं।

जो इलाके में कांग्रेस के पिलर कहे जाते हैं। जिन्होंने खुद तीन-चार दशक कांग्रेस की ग्रासरूट पर सेवा की हो। टोंक, भीलवाड़ा, नागौर, जयपुर शहर और जयपुर देहात समेत अनेक जिलों में ऐसे नाम हैं, जो भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( @ashokgehlot51) व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ( @GovindDotasra ) की निगाह में छोटे/नगण्य हों, लेकिन मौका मिले तो बड़ा काम कर सकते हैं। 


जिलाध्यक्ष चयन के लिए कांग्रेस के नीति निर्धारक एक फिल्टर जरूर लगायें कि विधायक, विधानसभा-लोकसभा चुनाव पराजित प्रत्याशी को नहीं बनाया जाए, बल्कि जो 2018 के विधानसभा व 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट से वंचित रह गए थे.. उन्हें जिलाध्यक्ष बनाया जाए।

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