Adi Shankaracharya Jayanti 2023:- चार दिशाओं में मठ की स्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य के जन्मोत्सव पर jhunjhunu के गणेश चैतन्य महाराज ने हरिद्वार में किया संत पूजन व गंगा स्नान

देखा गया

सांस्कृतिक एकता के पक्षधर आदि शंकराचार्य के द्वारा मठों में यह थी पुजारी की व्यवस्था..पढ़िए रोचक जानकारी


Media Kesari

Haridwar (Uttarakhand)


हरिद्वार(उत्तराखंड)- हर वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) की जयंती मनाई जाती है।इस वर्ष आदि शंकराचार्य का जन्मोत्सव 25 अप्रैल 2023 को देशभर में मनाया जा रहा है।  हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकारचार्य की सबसे बड़ी भूमिका  मानी जाती है।

  आदि शंकराचार्य जयंती 2023 के शुभ अवसर पर झुंझुनू (jhunjhunu) के षड्दर्शन अखाड़ा मंडल अध्यक्ष ब्रह्मचारी गणेश चैतन्य महारज ने हर की पेड़ी में गंगा स्नान कर भगवान शंकराचार्य का पूजन किया। इसके साथ ही सिद्धेश्वर आश्रम के  महंत योगी चेतन नाथ महाराज का हिन्दू रीति से सम्मान किया।

हरिद्वार(उत्तराखंड)- हर वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) की जयंती मनाई जाती है।इस वर्ष आदि शंकराचार्य का जन्मोत्सव 25 अप्रैल 2023 को देशभर में मनाया जा रहा है।  हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकारचार्य की सबसे बड़ी भूमिका  मानी जाती है।   आदि शंकराचार्य जयंती 2023 के शुभ अवसर पर झुंझुनू (jhunjhunu) के षड्दर्शन अखाड़ा मंडल अध्यक्ष ब्रह्मचारी गणेश चैतन्य महारज ने हर की पेड़ी में गंगा स्नान कर भगवान शंकराचार्य का पूजन किया। इसके साथ ही सिद्धेश्वर आश्रम के  महंत योगी चेतन नाथ महाराज का हिन्दू रीति से सम्मान किया।   मठों की स्थापना कर सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधा-  ब्रह्मचारी गणेश चैतन्य महाराज ने आदि शंकराचार्य के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इनका जन्म दक्षिण भारत के नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था। इसलिए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं।


  मठों की स्थापना कर सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधा-


 ब्रह्मचारी गणेश चैतन्य महाराज ने आदि शंकराचार्य के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इनका जन्म दक्षिण भारत के नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था। इसलिए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं। आदि शंकराचार्य ने 8 साल की उम्र में सभी वेदों का ज्ञान हासिल कर लिया था। आदि शंकराचार्य को हिंदू धर्म में सबसे प्रमुख और महान दार्शनिकों में से एक माना जाता है। उन्हें वैदिक धर्म का रक्षक और अद्वैत वेदांत का प्रतिपादक कहा जाता था।

गणेश चैतन्य महाराज ने आगे बताया कि 8 साल की उम्र में सभी वेदों के जानकार आदि शंकराचार्य ने भारत की यात्रा की और चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी। जो कि आज के चार धाम हैं। शंकराचार्य ने गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), श्रंगेरी पीठ (रामेश्वरम्), शारदा मठ (द्वारिका) और ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ धाम) की स्थापना की थी।


  गणेश चैतन्य महाराज ने आगे बताया कि 8 साल की उम्र में सभी वेदों के जानकार आदि शंकराचार्य ने भारत की यात्रा की और चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी। जो कि आज के चार धाम हैं। शंकराचार्य ने गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), श्रंगेरी पीठ (रामेश्वरम्), शारदा मठ (द्वारिका) और ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ धाम) की स्थापना की थी।


इस प्रकार की थी पुजारियों की व्यवस्था-


भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने विशेष व्यवस्था की थी। उन्होंने उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्मण पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पुजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के ब्राह्मण पुजारी को रखा था। जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो और एकता के सूत्र में बंध सके।


धर्म और संस्कृति की रक्षा-


गणेश चैतन्य महाराज ने बताया कि आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के संन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।

गणेश चैतन्य महाराज ने बताया कि आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के संन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।  इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षा करनी होती है। इन जगहों से कोई अधर्मी देश में न आ सके, इसका ध्यान भी रखा जाता है। पुरी, तीर्थ और आश्रम नाम के संन्यासियों को तीर्थों और प्राचीन मठों की रक्षा करनी होती है।


इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षा करनी होती है। इन जगहों से कोई अधर्मी देश में न आ सके, इसका ध्यान भी रखा जाता है। पुरी, तीर्थ और आश्रम नाम के संन्यासियों को तीर्थों और प्राचीन मठों की रक्षा करनी होती है।

भारती और सरस्वती नाम के संन्यासियों का काम देश के इतिहास, आध्यात्म, धर्म ग्रंथों की रक्षा और देश में उच्च स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना है। गिरि और पर्वत नाम के संन्यासियों को पहाड़, वहां के निवासी, औषधि और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया। सागर नाम के संन्यासियों को समुद्र की रक्षा के लिए तैनात किया गया।


 शंकराचार्य जयंती का महत्व-


1- आदि शंकराचार्य ने सभी को अद्वैत वेदांत के विश्वास और दर्शन के बारे में पढ़ाया था।

सभी को उपनिषद, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्रों के प्राथमिक सिद्धांतों को सिखाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।


2- उन्होंने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए विभिन्न देशों की यात्रा की।


3- उन्होंने देश के चार अलग-अलग दिशाओं में चार मठों की स्थापना की।

 दक्षिण में श्रृंगेरी, उत्तर में कश्मीर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारका।

Post a Comment

0 Comments