'काश!...मेरी होती सौ संतान, देश पर कर देती कुर्बान' ...दर्शकों में देशभक्ति का भाव भर गया नाटक "महा परमवीर"

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- राजस्थान के वीर जवानों के जीवन, शौर्य और बलिदान को कलाकारों ने अपने अभिनय से किया जीवंत


Media Kesari

Jaipur (Rajasthan)

जयपुर: स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार को जवाहर कला केन्द्र में देश भक्ति की भावना से ओत-प्रोत नाटक 'महा परमवीर' का मंचन किया गया। अशोक बांठिया के निर्देशन में हुए नाटक में परमवीर चक्र और महावीर चक्र सम्मानित राजस्थान के 6 वीरों की शौर्य गाथा को दर्शाया गया। मिस्टिक-एक्ट्स ग्रुप के कलाकारों के अभिनय ने सभी दृश्यों को मंंच पर प्रभावी तरीके से जीवंत कर दिखाया।

जयपुर: स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार को जवाहर कला केन्द्र में देश भक्ति की भावना से ओत-प्रोत नाटक 'महा परमवीर' का मंचन किया गया। अशोक बांठिया के निर्देशन में हुए नाटक में परमवीर चक्र और महावीर चक्र सम्मानित राजस्थान के 6 वीरों की शौर्य गाथा को दर्शाया गया। मिस्टिक-एक्ट्स ग्रुप के कलाकारों के अभिनय ने सभी दृश्यों को मंंच पर प्रभावी तरीके से जीवंत कर दिखाया।


'महा परमवीर' वीर गाथा है परमवीर कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह, मेजर शैतान सिंह भाटी, लेफ्टिनेंट किशन सिंह राठौड़ और महावीर लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह व नायक दिगेन्द्र कुमार की। अभिराम भडकमकर ने इसे कहानी का रूप दिया है।

 

महा परमवीर' वीर गाथा है परमवीर कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह, मेजर शैतान सिंह भाटी, लेफ्टिनेंट किशन सिंह राठौड़ और महावीर लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल भवानी सिंह व नायक दिगेन्द्र कुमार की। अभिराम भडकमकर ने इसे कहानी का रूप दिया है।

 मंच से पर्दा उठता है कक्षा का दृश्य साकार होता है। बच्चों से राजस्थान के वीरों के विषय में सवाल किया जाता है। मोबाइल के जाल में फंसी नयी पीढ़ी को इनकी पहचान का कोई भान नहीं होता है। यहीं से राजस्थान के इन वीरों की जिंदगी का मंचन स्टेज पर शुरू होता है। इसके बाद नाटक पलटता है मेजर शैतान सिंह की जिंदगी के स्वर्णिम पन्नों को। कैसे उनका बचपन गुजरा, कैसे उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया और युद्ध में कैसे दुश्मनों को धूल चटाई। 


हमारे वीर जवान ही नहीं उनके परिवारजनों में भी देश प्रेम का जज़्बा गजब होता है। मेजर पीरू सिंह जब सेना में नियुक्ति के लिए घर से निकलते हैं तो यह बात सामने आती है। बेटे को विदाई देते समय पीरू सिंह की मां की आंखों से आंसू छलक जाते है। पीरू सिंह वजह पूछते हैं तो उनकी मां कहती है - "काश मेरे सौ बेटे होते तो सभी को भारत माँ की सेवा के लिए सेना में भेजती।" यह दृश्य देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गए। एक-एक करके सभी वीरों के जीवन, शौर्य और बलिदान को नाटक में दर्शाया गया। बड़ी संजीदगी से कभी-कभी ये कहानियां एक-दूसरे के सामने आ खड़ी होती है और फिर अपनी राह पर निकल पड़ती है।

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