Jairangam Theatre Festival:- असम में लोक संस्कृति और रंगमंच के रंग ​बिखेर गया जयरंगम फ्रिंजेस

देखा गया

असम में सात दिवसीय थिएटर फेस्टिवल का समापन

टांगला निवासियों के दिलों पर छोड़ी छाप


Media Kesari

Jaipur/Guwahati

जयपुर/गुवाहाटी: लोक संस्कृति के सौंदर्य और रंगमंच के रंगों से सात दिन से रूबरू करवा रहे जयरंगम फ्रिंजेस ​(Jairangam fringes)फेस्टिवल का शनिवार को समापन हुआ। थ्री एम डॉट बैंड ​थिएटर फैमिली सोसाइटी ( 3m dot bands theatre family society) और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित फेस्टिवल टांगला निवासियों के दिल पर छाप छोड़ गया। फेस्टिवल के अंतिम दिन शनिवार को असम पुलिस के डीआईजी सिद्धार्थ शंकर शर्मा ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। उन्होंने न केवल कलंदर स्टूडियो की ओर से पेश राजस्थानी लोक गीतों को सुना बल्कि गुनामोनी बोरुआ निर्देशित नाटक 'हेपाहोर जूलोनगा' नाटक भी देखा। शर्मा ने कलाकारों व कला प्रेमियों से वार्ता भी की।

Media Kesari  Jaipur/Guwahati  जयपुर/गुवाहाटी: लोक संस्कृति के सौंदर्य और रंगमंच के रंगों से सात दिन से रूबरू करवा रहे जयरंगम फ्रिंजेस ​(Jairangam fringes)फेस्टिवल का शनिवार को समापन हुआ। थ्री एम डॉट बैंड ​थिएटर फैमिली सोसाइटी ( 3m dot bands theatre family society) और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित फेस्टिवल टांगला निवासियों के दिल पर छाप छोड़ गया। फेस्टिवल के अंतिम दिन शनिवार को असम पुलिस के डीआईजी सिद्धार्थ शंकर शर्मा ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। उन्होंने न केवल कलंदर स्टूडियो की ओर से पेश राजस्थानी लोक गीतों को सुना बल्कि गुनामोनी बोरुआ निर्देशित नाटक 'हेपाहोर जूलोनगा' नाटक भी देखा।
नाटक हेपाहोर जूलोनगा-1

'केसरिया बालम', 'और रंग दे रे' सरीखे राजस्थानी लोक गीतों के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके बाद रोंगडुली सांस्कृतिक केंद्र के कलाकारों ने 'हेपाहोर जूलोनगा' नाटक में शांत और सहज जीवन का महत्व दर्शाया। तीन आत्माओं की वार्ता के साथ नाटक की शुरुआत होती है। इन्हें धरती पर मानव रूप में जन्म लेना है पर मानव के गिरते नैतिक मूल्यों और उसकी असमंजस की स्थिति को लेकर ये विचाराधीन है। इनका कहना है कि इंसान नैतिक मूल्यों की कीमत पर आंख मूंदकर और सुख-शांति त्यागकर सफलता के पीछे भाग रहे हैं। अंतत: वे जन्म लेने से मना कर देते हैं और अपने तर्कों को सिद्ध करने के लिए हारुमाई नामक महिला की कहानी सुनाते हैं। हारुमाई को मछली पकड़ते समय भारी मात्रा में धन मिल जाता है। थोड़े समय के लिए वह खुश होती है पर धीरे-धीरे उसे एहसास होता है कि पैसा उसके शांतिपूर्ण जीवन और स्वतंत्रता में बाधा बन जाता है। उसकी मानसिक स्थिति गड़बड़ाने लगती है, स्थिति से छुटकारा पाने के लिए वह पैसा वापस कर देती है और शांति से जीवन बसर करने लगती है। नाटक के बाद असम के लोक कलाकारों ने मंच पर लोक नृत्यों की प्रस्तुति भी दी।

कलाकारों ने 'हेपाहोर जूलोनगा' नाटक में शांत और सहज जीवन का महत्व दर्शाया। तीन आत्माओं की वार्ता के साथ नाटक की शुरुआत होती है। इन्हें धरती पर मानव रूप में जन्म लेना है पर मानव के गिरते नैतिक मूल्यों और उसकी असमंजस की स्थिति को लेकर ये विचाराधीन है..जयरंगम की तरफ से हेमा गेरा ने संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार को धन्यवाद ज्ञापित किया।
मंच पर उपस्थित अतिथिगण 

 समापन के मौके पर जयरंगम की तरफ से हेमा गेरा ने संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने फेस्टिवल में सक्रिय भूमिका निभाने वाले सभी कलाकारों व सहयोगी समूहों का आभार व्य​क्त किया। 

गौरतलब है कि सात दिवसीय जयरंगम फ्रिंजेस की शुरुआत 24 सितंबर को हुई थी। फेस्टिवल में मास्क मेकिंग वर्कशॉप, राजस्थानी व पूर्वोत्तर भारत की लोक कलाओं की प्रस्तुतियों के साथ सात नाटकों का मंचन किया गया। इनमें तीन नाटक राजस्थान के व चार पूर्वोत्तर के नाटक शामिल रहे।

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