Rajasthan Election 2023 - राजस्थान भाजपा मे झोल-झप्पा

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राजस्थान में क्या बीजेपी का किला भुरभुरा रहा है..?


कैलाश शर्मा ✍🏻

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं)


राजस्थान भाजपा (Rajasthan  BJP) मे इस समय झोल-झप्पा की स्थिति बनी हुई है। प्रकट मे यह लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह, संगठन महामंत्री बी एल संतोष, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सी पी जोशी और भाजपा विधायक दल नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ आदि मीटिंग्स पर मीटिंग्स, जन सभाओं पर जनसभाएं, लगातार मीडिया के जरिए संबोधन तथा अशोक गहलोत ( CM Ashok Gehlot)  के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार व कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को जमकर कोस रहे हैं, लेकिन मरूभूमि राजस्थान से अपेक्षित रेस्पॉन्स नहीं मिल रहा।

कैलाश शर्मा ✍🏻  (लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं)    राजस्थान भाजपा (Rajasthan  BJP) मे इस समय झोल-झप्पा की स्थिति बनी हुई है। प्रकट मे यह लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह, संगठन महामंत्री बी एल संतोष, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सी पी जोशी और भाजपा विधायक दल नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ आदि मीटिंग्स पर मीटिंग्स, जन सभाओं पर जनसभाएं, लगातार मीडिया के जरिए संबोधन तथा अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार व कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को जमकर कोस रहे हैं, लेकिन मरूभूमि राजस्थान से अपेक्षित रेस्पॉन्स नहीं मिल रहा।

उधर नदी आई नहीं और सूंसाट पहले मच गया वाली कहावत चरितार्थ करते हुए राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान का क्रम विगत 1500 दिन से लगातार जारी है। मुख्यमंत्री पद की लालसा सोलह से अधिक नेताओं के मन में है। सबको लग रहा है अभी नहीं मिला, तो फिर गई पंद्रह साल की। तब तक क्या हो पता नहीं। 

हाड़ौती से ओम बिड़ला, मदन दिलावर, मेवाड़ से सी पी जोशी, दीया कुमारी, धर्म नारायण जोशी, मारवाड़ से गजेंद्र सिंह, ओम प्रकाश माथुर व ज्ञान चंद पारख, बीकाणा से अर्जुन मेघवाल व राजेंद्र सिंह, शेखावाटी से सुभाष महरिया, सतीश पूनिया व स्वामी सुमेधानंद, तोरावाटी से राज्य वर्धन सिंह राठौड़, सुनील बंसल व राव राजेंद्र सिंह, ढूंढाड़ से किरोड़ीलाल मीणा, अलका गुर्जर व जसपाल कौर, ब्रज मेवात से बाबा बालकनाथ, रंजीता कोली व रोहिताश्व, मेरवाड़ा से भूपेन्द्र यादव, अनीता भदेल व भागीरथ चौधरी आदि अनेक नाम है जिनकी चर्चा CM Material के तौर पर होती है। 

पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें एक भी नाम अब ऐसा नहीं है, जिसका राज्य-व्यापी असर व स्वीकार्यता हो।

वसुंधरा राजे का नाम मीडिया ने हाईप देकर चर्चा में बना रखा है, बाकी हाड़ौती मे ही उन्हें मदन दिलावरओम बिड़ला से चुनौती मिल रही है, शेष राजस्थान तो दूर की बात है। कुल मिलाकर अनेक दावेदारों की दौड़ में राजस्थान भाजपा को एक भी नेता नजर नहीं आ रहा जो कांग्रेस के अशोक गहलोत से मुकाबला कर सके अर्थात राजस्थान भाजपा मे सशक्त नेतृत्व का अभाव है, जो हैं वे पद-लोलुप हैं। सबसे बड़ी बात यह कि खुद नरेंद्र मोदी व अमित शाह का नेतृत्व भी राजस्थान के मतदाताओं को अब मंजूर नहीं, तभी नरेन्द्र मोदी कमल के फूल के नेतृत्व की बात कहते हैं। सक्षम नेतृत्व का अभाव भाजपा की पहली बड़ी कमजोरी है।


भाजपा मे टिकट के लिए जो माथा-पच्ची चल रही है, वह भी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पा रही। भाजपा के नीति-निर्धारक असमंजस में हैं, जब नामों पर डिसकस होता है तो यह कमेंट आता है कि यह मैडम का आदमी है, यह राजेंद्र राठौड़ का है, यह सतीश पूनिया का है.. आदि आदि। यह सुनकर अमित भाई की त्यौंरियां चढ़ जाती हैं और मीटिंग यथा-स्थिति में समाप्त हो जाती हैं।

ऐसा एक-दो बार नहीं दस बार हो गया है, कभी दिल्ली में, कभी जयपुर में और कभी पंचसितारा होटलों में। भाजपा के कर्ता-धर्ता असहाय नजर आ रहे हैं।

यह तो हुई ऊपर की बात। अब ग्राउंड रियलिटी देखिए ...

अजमेर जिले की विजिट का मौका मिला, वहाँ भाजपा के तमाम विधायकों के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी है। 55 वर्ष से जनसंघ-भाजपा के लिए सतत सक्रिय एक दिग्गज नेता ने किशनगढ़ के पहाड़िया चौराहे पर बताया कि 1980 से अब तक जितने विधायक बने, अधिकतर ने पार्टी को मजबूत बनाने की बजाय निजी हित अधिक साधे हैं, जिस कारण आम मतदाताओं मे ही नहीं बल्कि पार्टी के निष्ठावान जनों के बीच इनकी छवि ध्वस्त मात्र है। पूरे अजमेर जिले में भाजपा के लिए एक भी सीट जीतना मुश्किल है। लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, भैरोंसिंह शेखावत, भानुकुमार शास्त्री, सुंदर सिंह भंडारी आदि को अपने स्कूटर पर बिठाकर अजमेर जिला घुमाने वाले इन वरिष्ठ नेता का कहना है कि अजमेर जिले में भाजपा का नाश विधायकों की अनदेखी के कारण हो रहा है।

बहरहाल यह उदाहरण मात्र है, अनेक जिलों की यह तस्वीर है। भाजपा का संगठन छिन्न-भिन्न है। मंडल के नीचे सब जगह बिखराव है। पार्टी यात्राओं-सभाओं में व्यस्त है। निचले स्तर की कमजोरी से भाजपा का किला राजस्थान में भुरभुरा रहा है।

ऐसे में कांग्रेस के लिए भरपूर मौका है।

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