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Jaipur (Rajasthan)
बुधवार को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कोर कमेटी समेत अनेक कमेटियों की घोषणा की है। इसके पूर्व राजस्थान में स्क्रीनिंग कमेटी, प्रदेश व जिला स्तरीय आब्जर्वर, AICC Coordinators भी घोषित किए जा चुके हैं। समानांतर AICC से प्रदेश प्रभारी और सह-प्रभारी भी सक्रिय हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी, संभाग-जिला-विधानसभा क्षेत्र वार प्रभारी भी घोषित हो गए हैं। जिला कांग्रेस अध्यक्ष मनोनीत हो गये हैं, हालांकि अनेक जिलो के पदाधिकारियों की घोषणा बाकी है। ब्लॉक अध्यक्ष बने हैं, अनेक जगह उनकी टीम लंबित है। नगर-मंडल इकाइयों के गठन का काम जारी है।
इस तमाम परिदृश्य में दो महत्वपूर्ण होमवर्क बाकी हैं, जिन पर अभी तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है। यह ध्यान नहीं दिया गया तो अब तक घोषित/मनोनयन desired result नहीं दे पायेंगे।
साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 156 सीट जीतने का जो लक्ष्य रखा है, वह हासिल करना टफ हो सकता है।
एक संकेत सट्टा बाजार दे रहा है, जो राजस्थान में भाजपा की 115-120 व कांग्रेस के लिए 55-60 सीटों का आकलन कर रहा है। यह आकलन मुख्यमंत्री के मिशन से 100 सीट पीछे चल रहा है। ऐसे में जरूरी है कांग्रेस राजस्थान में over confidence से बचे और जो pending homework है, वह करे।
महत्वपूर्ण यह है कि राजस्थान में भाजपा अनेक गुटों में विभाजित है, अंदरुनी मारामारी इतनी है कि कांग्रेस के लिए भाजपा को ठोकना बहुत आसान है, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है। दो उदाहरण सामने हैं, पहला भीलवाड़ा जिले का, जहाँ के गुलाबपुरा कस्बे में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सभा की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक मीटिंग में उदयलाल आंजना और रामलाल जाट के लिए कहा था कि इन दोनों कैबिनेट मंत्रियों को 5-5 सीटें जितवाने के लिए सक्रिय होना चाहिये। पर धरातल का सच यह है कि खुद रामलाल जाट के लिए मांडल की सीट टफ है अर्थात जीत सुनिश्चित नहीं है। यही स्थिति कांग्रेस के एक युवा नेता की है। अन्य सीटों पर भी कमजोरी नजर आ रही है। यहाँ तक कि भीलवाड़ा सीट पर कांग्रेस के पास जीतने काबिल प्रत्याशी मुख्यधारा के कांग्रेस जनों मे नहीं है। दूसरा उदाहरण मेवाड़ की प्रमुख सीट उदयपुर का है, जहाँ कांग्रेस के पास टिकट मांगने वाले तो बहुत हैं, लेकिन जीतने योग्य फेस ही नहीं है।
वस्तुतः कांग्रेस मे जो होना चाहिये, वह नहीं हो रहा। सिफारिशी नियुक्तियों और मनोनयन के कारण असक्षम व नाकाबिल चेहरे मुख्य धारा में आ गए। मुख्यमंत्री बनने के लिए सतत प्रयत्नशील नेता ने अपने इलाके में ऐसे व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बनवाया है, जिसे विगत दो दशक के दौरान किसी ने कांग्रेस के बूथ पर मेहनत करते नहीं देखा। ऐसे ही जयपुर जिला देहात मे एक नगर अध्यक्ष ऐसा बना दिया गया, जिसे कांग्रेस का क भी पता नहीं। ऐसी फौज से कैसे चुनाव लड़ेंगे? क्या
सवाल है कांग्रेस राजस्थान में बहुमत लाने के लिए क्या करे ?
पहला कदम जितने भी विधानसभा क्षेत्र प्रभारी PCC ने बनाए हैं, वे सभी बूथ एरिया की विजिट कर वहाँ के कांग्रेस परिवारों से मिलें और उस बूथ पर लीड कैसे मिले, इसके लिए एक्शन प्लान बनाकर implement करे।
दूसरा विधानसभा चुनाव प्रत्याशी चयन मे कुछ फिल्टर लगाये जायें, जैसे -
1. सेवा निवृत्त सरकारी/पुलिस अधिकारियों
2. 2018 विधानसभा चुनाव पराजितों
3. जिस जाति के प्रत्याशी गत 3-4 चुनाव में किसी विधानसभा क्षेत्र विशेष मे लगातार पराजित हो रहे हैं, उस जाति के टिकट आवेदकों
4. दलबदलुओं व पैराशूटियों/बाहरी टिकट आवेदकों को
टिकट नहीं दिया जाए।
टिकट देने में
1. कांग्रेस के प्रति निष्ठा
2. विजनरी एप्रोच
3. जीत की ललक
4. जन-स्वीकार्यता
5. बूथ के माइक्रोमैनेजमेंट की क्षमता
वाले आवेदकों को वरीयता मिले।
2018-2023 के दौरान कांग्रेस ने राजस्थान में बहुत बगावत झेली है। बगावतियों और उनके समर्थकों का मुख्य धारा में होना चिंताजनक है। कांग्रेस के लिए अपशब्द बोलने वाले बुजुर्ग नेता जब समितियों में नजर आते हैं तो चिंता होती है। पर इस चिंता का समाधान होगा, ऐसा लग नहीं रहा, ऐसे में निष्ठावान कांग्रेस जनों का मनोबल घटता नजर आ रहा है।
काश AICC इसे समझ पाती।
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