'हां, मैं सावित्रीबाई फुले!...पढूंगी, लिखूंगी, सीखूंगी और सिखाउंगी'

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जेकेके में नाटक का मंचन

Media Kesari

Jaipur (Rajasthan)


जयपुर: जवाहर कला केन्द्र (Jawahar Kala Kendra) की ओर से अक्टूबर उमंग: लोक संस्कृति संग थीम पर कला संसार मधुरम के अंतर्गत बुधवार को नाटक 'हां, मैं सावित्रीबाई फुले' का मंचन किया गया। सुषमा देशपांडे के निर्देशन में हुए नाटक में समाज सुधारक ज्योतिबा राव फुले और सावित्रीबाई फुले के संघर्ष का चित्रण किया गया। कलाकार शुभांगी और शिल्पा ने विभिन्न पात्रों को मंच पर साकार किया। 

Media KesariJaipur (Rajasthan)जयपुर: जवाहर कला केन्द्र (Jawahar Kala Kendra) की ओर से अक्टूबर उमंग: लोक संस्कृति संग थीम पर कला संसार मधुरम के अंतर्गत बुधवार को नाटक 'हां, मैं सावित्रीबाई फुले' का मंचन किया गया। सुषमा देशपांडे के निर्देशन में हुए नाटक में समाज सुधारक ज्योतिबा राव फुले और सावित्रीबाई फुले के संघर्ष का चित्रण किया गया। कलाकार शुभांगी और शिल्पा ने विभिन्न पात्रों को मंच पर साकार किया।

चंचल स्वभाव की छोटी सावित्री जिसे भान नहीं है कि भविष्य में उसे समाज को दिशा देने में कितनी बड़ी भूमिका निभानी है। सावित्री इमली और जामुन तोड़ती है, मां मिट्टी के चुल्हे में खाना पकाने को कहती है तो वह मिट्टी से खेलना शुरू कर देती है। समय करवट लेता है और सावित्री का विवाह हो जाता है पूना के ज्योतिबा राव फुले से। पढ़ने-लिखने में अव्वल ज्योति कुरीतियों से ग्रस्त तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ मुखर रहते हैं। उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ता है। वे सावित्री को कहते हैं, 'अन्याय के विरुद्ध तुम मेरा साथ दोगी ना सावित्री', यहीं से उनकी अर्धांगिनी सावित्री उनके संघर्ष को भी आधा बांट लेती है। 'मैं पढूंगी, मैं लिखूंगी, मैं सीखूंगी' इस ध्येय के साथ सावित्री अपने पति संग घर पर पढ़ती हैं। घर से सीख कर सावित्री स्कूल में महिलाओं को पढ़ाती हैं। 

विरोध का सामना करने के बाद भी वे शिक्षा की मशाल हाथ में लेकर निकल पड़ते हैं। स्कूल के लिए जाते समय सावित्री से अपशब्द कहे जाते हैं, उन पर कीचड़ फेंका जाता है, पत्थर फेंके जाते हैं। निर्भिक सावित्री और ज्योति अपने पथ से तनिक भी नहीं डगमगाते हैं। सावित्रीबाई और ज्योतिबा दोनों


विरोध का सामना करने के बाद भी वे शिक्षा की मशाल हाथ में लेकर निकल पड़ते हैं। स्कूल के लिए जाते समय सावित्री से अपशब्द कहे जाते हैं, उन पर कीचड़ फेंका जाता है, पत्थर फेंके जाते हैं। निर्भिक सावित्री और ज्योति अपने पथ से तनिक भी नहीं डगमगाते हैं। सावित्रीबाई और ज्योतिबा दोनों ही सामाजिक कुरुतियों के खिलाफ जंग लड़ते-लड़ते जिंदगी को विदा कहते हैं। दोनों ने शिक्षा की जो अलख जगाई उसके तेज से समाज आज भी दीप्तिमान है।

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