New District in Rajasthan - नुकसानदायक रहा है मुख्यमंत्रियों के लिए सांभर को जिला नहीं बनाना..

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Ashok Gehlot चाहें तो कर सकते हैं इस ऐतिहासिक भूल में सुधार


Media Kesari

Jaipur (Rajasthan)

विगत 75 साल के इतिहास को देखें तो "सांभर" को जिला नहीं बनाना मुख्यमंत्रियों के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक रहा है, या तो उन्हें अपदस्थ होना पड़ा है या फिर आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ी पराजय झेलनी पड़ी है।

 इसके पीछे वजह है "सांभर" को  डिजर्व होते हुए भी जिला न बनाना, जबकि यह न्यायोचित प्रसंग भी है। जब किसी न्यायोचित प्रसंग में राजा अर्थात शासक न्याय नहीं करे या न्याय की अवहेलना करे, तो ऐसे में डेस्टिनी अर्थात कुदरत (नीयति) इंसाफ जरूर करती है। सांभर को जिला न बनाने के कारण राजस्थान में अधिकतर मुख्यमंत्री या तो अपदस्थ हो गये, या फिर अगले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी पराजित हो गई। 

विगत 75 साल के इतिहास को देखें तो "सांभर" को जिला नहीं बनाना मुख्यमंत्रियों के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक रहा है, या तो उन्हें अपदस्थ होना पड़ा है या फिर आगामी विधानसभा चुनावों में बड़ी पराजय झेलनी पड़ी है।   इसके पीछे वजह है "सांभर" को  डिजर्व होते हुए भी जिला न बनाना, जबकि यह न्यायोचित प्रसंग भी है। जब किसी न्यायोचित प्रसंग में राजा अर्थात शासक न्याय नहीं करे या न्याय की अवहेलना करे, तो ऐसे में डेस्टिनी अर्थात कुदरत (नीयति) इंसाफ जरूर करती है। सांभर को जिला न बनाने के कारण राजस्थान में अधिकतर मुख्यमंत्री या तो अपदस्थ हो गये, या फिर अगले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी पराजित हो गई।


वस्तुतः सांभर सृष्टि के सर्व-प्राचीन स्थलों में एक है और अनेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। समुद्र मंथन यहीं हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण की कुलमाता देवयानी के नाम से तीर्थ यहीं है। मां अन्नपूर्णा-शाकंभरी के वरदान से नमक की भूमि सांभर है। ऐतिहासिक नजरिए से देखें तो वासुदेव चौहान द्वारा स्थापित सपालदक्ष प्रांत की राजधानी सांभर रही है। उनकी 21 पीढियों ने यहाँ (सन 650 से 1110 तक) राज किया है। दक्षिणी पंजाब, हरियाणा और दिल्ली तक सपालदक्ष प्रांत के दायरे में था। बाद में चौहान वंश के अजयराज ने अजयमेरु (वर्तमान अजमेर) को राजधानी बनाया था।


रियासत-काल व ब्रिटिश शासन में सांभर को जयपुर व जोधपुर दोनों स्टेट ने जिले का दर्जा दे रखा था। राजस्थान के प्रमुख शहरों जयपुर, जोधपुर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर, अजमेर आदि की स्थापना सांभर से बहुत बाद की है। 

आजादी के बाद 30 मार्च को राजस्थान गठित हुआ, तो सांभर के स्वतन्त्रता सेनानी बनवारीलाल शर्मा, दीनदयाल शर्मा और बिहारीलाल अग्रवाल, रामप्रसाद हुरकट और सेठ बख्तावर लाल टांक ने जिला बनाने की बात रखी। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री ने तरजीह नहीं दी। नतीजा दो साल भी मुख्यमंत्री नहीं रहे। फिर जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने, उन्हें किशनगढ़ से 1952 का विधानसभा उपचुनाव जितवाने मे बनवारीलाल शर्मा व पंडित दीनदयाल शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान था, लेकिन वे भी सांभर को जिला बनाने की मांग पर अनदेखी करते रहे। नतीजा दो साल में ही उन्हें अपदस्थ होना पड़ा और मोहनलाल सुखाडिय़ा मुख्यमंत्री बने। 

उनसे निवेदन किया तो कहा कि अभी राजस्थान कच्ची स्थिति में है, थोड़ा जम जाए, फिर आगे बना देंगे। लंबे समय तक इंतजार किया, लेकिन चार बार मुख्यमंत्री बने मोहनलाल सुखाडिय़ा ने जिले को लेकर सांभर की अवहेलना की, नतीजा जुलाई 1971 मे अपदस्थ हो गए।

1977 मे जनता पार्टी की सरकार बनी, तो सांभर जनता पार्टी के नेताओं ने इस मुद्दे को गर्मजोशी से उठाया, जनता पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कल्याण सिंह कालवी ने समर्थन भी दिया, लेकिन भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री रहते यहाँ की भावना समझ नहीं पाए। नतीजा अढाई साल में ही अपदस्थ हो गए।

1980 से 1990 तक जगन्नाथ पहाड़िया, शिवचरण माथुर व हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री रहे। तीनों तक निवेदन किया गया, लेकिन नहीं सुनी और तीनों अपदस्थ ही हुए। 1990-92 मे भैरोंसिंह शेखावत ने दौसा को जिला बना दिया, लेकिन सांभर को रख दिया, नतीजा अपदस्थ हुए और राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लगा। 1993-1998 तक फिर मुख्यमंत्री बने, सांभर समाज जयपुर के तत्कालीन अध्यक्ष बाबूलाल तोतला ने बहुत कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। नतीजा 1998 विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी पराजय मिली।

इसके बाद कोई मुख्यमंत्री दुबारा लगातार सत्ता में नहीं लौटा। सभी से सांभर को जिला बनाने की मांग लगातार की गई। इस बार कांग्रेस ने नारा दिया है "काम किया दिल से, कांग्रेस फिर से"। 

अब आचार संहिता कभी भी लग सकती है। सांभर को जिला बनाने की गुहार-मांग मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लगातार की जा रही है। इलाके के कांग्रेस-जनों का कहना है कि विधानसभा चुनाव बाद तीन दशक से हर बार सत्ता पर काबिज दल बदल जाता है, यह क्रम थमे और अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस फिर से सरकार बनाए, इसके लिए इतिहास से  सबक लें और सदाशयता दिखाते हुए सांभर के साथ न्याय करें तथा आचार संहिता लागू होने के पूर्व सांभर को जिला बनाएं। कांग्रेस-जनों का जिम्मा था, ऐतिहासिक भूल व अन्याय से अवगत कराना। बाकी फैसला मुख्यमंत्री के हाथ में है।

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