नेता प्रतिपक्ष अशोक गहलोत ही रहें तो ' द बेस्ट'

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Media Kesari

Jaipur 

विधानसभा चुनाव-2023 उपरांत राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष (Leader of the Opposition of Rajasthan) के लिए चर्चाओं और तदनुसार कोशिशों का दौर शुरू हो गया है। कम से कम दस दिग्गज कांग्रेस विधायकों के नाम चर्चा में भी हैं। पर महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस आलाकमान बुद्धिमत्ता दिखाते हुए समुचित फैसला करता है अथवा 2003 व 2013 की तरह औपचारिकता का निर्वहन करता है।

उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव 2003 की पराजय के बाद हेमाराम चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया लेकिन सदन में उनकी भूमिका कामचलाऊ अर्थात औपचारिक ही रही। 2013 के विधानसभा चुनाव की पराजय के बाद रामेश्वर डूडी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया, लेकिन वे भी कोई प्रभावशाली काम नहीं कर पाए।अशोक गहलोत के अलावा अन्य किसी नाम पर


उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव 2003 की पराजय के बाद हेमाराम चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया लेकिन सदन में उनकी भूमिका कामचलाऊ अर्थात औपचारिक ही रही। 2013 के विधानसभा चुनाव की पराजय के बाद रामेश्वर डूडी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया, लेकिन वे भी कोई प्रभावशाली काम नहीं कर पाए।


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कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है राजस्थान और राजस्थान विधानसभा में भाजपा सरकार का मुकाबला करने के लिए नेता प्रतिपक्ष मजबूत और सक्षम हो। इस पद के लिए चर्चा में भले ही शांति धारीवाल, राजेंद्र पारीक, महेंद्र जीत मालवीय, हरीश चौधरी और सचिन पायलट के नाम चल रहे हों, लेकिन "लीडर आफ अपोजिशन" true leader ही होना चाहिये। बिना किसी पक्षपात के यह कहने मे हिचक नहीं है कि केवल अशोक गहलोत ही इस दायित्व का निर्वहन करने में सबसे अधिक सक्षम हैं। अतः यह जिम्मा उन्हें मिले, तभी कांग्रेस और राजस्थान के हित में रहेगा।

फिर लोकसभा चुनाव सामने हैं, मजबूत नेता प्रतिपक्ष बिना परफॉर्म करना टफ रहेगा। फिर अशोक गहलोत चूंकि 15 वर्ष मुख्यमंत्री रहे हैं, अतः सत्ता पक्ष को सदन और सदन के बाहर निरुत्तर करने में सक्षम भी। ऐसे में अशोक गहलोत के अलावा अन्य किसी नाम पर चर्चा या फैसला होता है, तो कांग्रेस की धार कुंद हो सकती है।

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