क्या कमल का फूल होगा मुख्यमंत्री ?

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Rajasthan Bjp Cm Face


कैलाश शर्मा ✍🏻

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )


राजस्थान विधानसभा चुनाव संपन्न हुए एक दर्जन दिन हो गए और चुनाव परिणाम आए चार दिन, लेकिन न तो भाजपा विधायक अपना नेता सुनिश्चित कर पाए हैं और न ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री का नाम तय कर पाया। दिलचस्प बात यह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह तथा जे पी नड्डा और अरुण सिंह मतदान पूर्व राजस्थान में कमल के फूल को भाजपा का फेस बताया करते थे, तो क्या राजस्थान का मुख्यमंत्री कमल का फूल होगा। यह चर्चा अब राजस्थान और हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि जापान से अर्जेंटीना तक और आयरलैंड से न्यूजीलैंड तक होने लगी है।

विधायक अपना नेता सुनिश्चित कर पाए हैं और न ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री का नाम तय कर पाया। दिलचस्प बात यह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह तथा जे पी नड्डा और अरुण सिंह मतदान पूर्व राजस्थान में कमल के फूल को भाजपा का फेस बताया करते थे, तो क्या राजस्थान का मुख्यमंत्री कमल का फूल होगा। यह चर्चा अब राजस्थान और हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि जापान से अर्जेंटीना तक और आयरलैंड से न्यूजीलैंड तक होने लगी है।


लोकतांत्रिक तरीके से राजस्थान में चुनाव संपन्न हुए। राजस्थान के मतदाताओं ने भाजपा को स्पष्ट बहुमत दे दिया। कायदे से अधिकतम चुनाव परिणाम के अगले दिन राजस्थान के मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा हो जानी चाहिए थी, लेकिन नहीं हो पाई। इसके मायने एकदम साफ है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उतना सक्षम नहीं है, जितना प्रचारित किया जाता रहा है। समय पर मुख्यमंत्री घोषित न कर नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जे पी नड्डा और अरुण सिंह ने अपनी अक्षमता प्रमाणित कर दी है।


अब यह भी लग रहा है कि राजस्थान में भाजपा कोई नया प्रयोग करे और किसी मुख्यमंत्री की बजाय कमल के फूल को ही सांकेतिक मुख्यमंत्री घोषित कर भरत की तरह शासन करे। भरत ने राम की चरणपादुका को राजा तुल्य मानकर जिस तरह शासन किया था, उसी तरह कमल को मुख्यमंत्री मानकर राज चलायें।


वस्तुतः सच यह है कि केंद्रीय नेतृत्व की चाहत और विजयी विधायकों की डिजायर के बीच मत-भिन्नता की स्थिति है। इस गैप को कवर कर संतुलन स्थापित करने के लिए कोई सक्षम मध्यस्थ खड़ा नहीं हुआ है। एक तरह तीर-कमान खिंचने की स्थिति बनी हुई है। अपने अपने स्वार्थ और अपना अपना अधिनायकवाद है। एक तरफ दस विधायक ऐसे हैं, जो 8 सिविल लाइंस जाने के तलबगार हैं। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी की अपनी पसंद और अमित शाह की अपनी choice है। जो विधायक नहीं हैं, उनमें से किसी को पैराशूट से टपकाने की चर्चा भी है अर्थात विधायकों की राय का कोई महत्व नहीं। 

कुल मिलाकर एक गुल-गपाड़ा भाजपा मे चल रहा है, जिसका समाधान मोदी-शाह को नहीं सूझ रहा और यह दोनों की राजनीतिक विफलता है। दर असल गलती मोदी-शाह की है, न तो वे कमान पूरी तरह हाथ में रख पाए और न ही प्रादेशिक नेताओं को पूरी छूट दे पाए और न ही संतुलन बना पाए। नतीजा राजस्थान की भाजपा राजनीति अब अनियंत्रित नजर आ रही है और समाधान करने में मोदी व शाह असहाय हैं।

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