दिला सकता है लोकसभा चुनाव में बहुमत
राजस्थान में सभी 25 सीटें जीतने के आसार
Media Kesari
Jaipur
करणपुर विधानसभा चुनाव ( Karanpur by election Result) में भाजपा की 11261 वोटों से हुई पराजय से देश में भाजपा की डू डू फुर्रे(du du furrey) हो गई है। इस परिणाम से समूचे उत्तरी भारत ही नहीं बल्कि देश भर में भाजपा का मनोबल एक झटके में 40% तक घट गया है और उधर कांग्रेस के मनोबल मे आश्चर्यजनक रूप से जंप आया है। अब सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, पी. चिदंबरम, अशोक गहलोत और मुकुल वासनिक के सामने अवसर है कि इस जंप का राजनीतिक लाभ लोकसभा चुनाव-2024 मे कांग्रेस को बहुमत दिला सके। राजस्थान में तो कांग्रेस विचारधारा वाले परिवारों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि कांग्रेस यहाँ की सभी 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव जीत सकती है।
जड़ता के हालात
राजस्थान के नजरिये से देखें, तो दो बातें बिलकुल साफ है। पहली तो यह कि 3 दिसंबर को विधानसभा चुनाव परिणाम मे विजय प्राप्ति के बाद भाजपा विधायकों और मंत्रिमंडल ने ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया, जो मतदाताओं को सुहाने वाला हो..अर्थात एक जड़ता सी बनी हुई है। दूसरी अहम बात यह है कि भाजपा मे अंदरूनी लोकतंत्र ध्वस्त प्रायः है, अधिनायकवाद का उद्भव हो गया है। सारा राज हस्तिनापुर के निर्देशानुसार संचालित होने जा रहा है। मंत्रिपरिषद का गठन इसका पहला उदाहरण है। इसके अलावा जितनी भी सरकारी घोषणाएं हुई हैं, वे मंत्रिमंडल की बैठक में तय नहीं हुई बल्कि अधिकारिक-प्रशासनिक स्तर पर ही हो रही हैं।
जनप्रतिनिधि कागजी तो नहीं
राजस्थान में भाजपा के चुने हुए विधायकों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाबंद कर गए हैं, बहुत से विधायकों की क्लास ले ली गई है। अब स्थिति यह है कि मंत्रियों-विधायकों के लिए अपने लेवल पर कुछ तय करने या कोई अनुशंसा करने जैसी स्थिति ही नहीं है, बल्कि सब कुछ कही ओर से निर्धारित हो रहा है। ऐसे में जनप्रतिनिधि कागजी या औपचारिक चेहरे बन कर न रह जाए.. यह स्थिति दृष्टिगत हो रही है। इस सच को करणपुर के मतदाताओं ने भांप लिया और सुरेंद्र पाल सिंह टीटी मंत्री बनने के बाद भी हार गए।
मोदी के फेस की पराजय
करणपुर की हार राजस्थान भाजपा की हार तो है ही, साथ में भाजपा के अधिनायकवाद की पराजय है। चूंकि यह चुनाव नरेन्द्र मोदी के फेस पर लड़ा गया था, लिहाजा राजस्थान के मतदाताओं ने उन्हें भी नकार दिया है। बस यही वह स्टेटस है, जहाँ से कांग्रेस बड़ा जंप कर सकती है और इस बीज को फलदार वृक्ष बना सकती है।
राजस्थान कांग्रेस चाहती है नेतृत्व बदलाव
महत्वपूर्ण बात यह है कि तमाम अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में राजस्थान की कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल नहीं कर पाई। बाद में एक अखबार को दिए साक्षात्कार में उन्होंने अपनी कमजोरियों को इंगित भी कर दिया। अब लोकसभा चुनाव के दौरान वे प्रभावी रहते हैं तब तो कांग्रेस की उम्मीद धराशाई समझी जा सकती है।
आलाकमान अगर राजस्थान कांग्रेस को सक्षम नेतृत्व दे, तो लोकसभा चुनाव में better than expectations result आ सकता है।
गेंद AICC के पाले में है, वे.मौके का लाभ उठाने के इच्छुक है या ... हारे को हरिनाम चाहते हैं।
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