Lok Sabha Election 2024
ऐसे ही हाल में आयकर विभाग ने धारा 43 B (H) लागू की है, जिसकी जकड़न में पूरे देश के कारोबारी आ गये हैं ..!
Media Kesari
Jaipur
लोकसभा चुनाव -2024 के दौरान राजस्थान का मतदाता असमंजस में है कि क्या करे? इसलिए कि एक तरफ सात भेल की नाव कांग्रेस है और दूसरी तरफ एक दशक से देश पर राज कर रही भाजपा। मतदाता किस पर भरोसा करे और किस पर नहीं, तय नहीं कर पा रहा। विडंबना इस बात की है कि राजस्थान में कोई तीसरा सक्षम और भरोसेमंद विकल्प अलग नहीं है।
राजस्थान में सबसे अधिक आबादी है किसान वर्ग की और 77 साल आजादी के हो गए, किसान की व्यवहारिक दिक्कतों का सच्चा समाधान अभी भी होना बाकी है। कहने को किसान के लिए कम लागत पर बिजली, अनुदानित मूल्य पर खाद और फसल उपरांत समर्थन मूल्य पर खरीद की योजना है। केंद्रीय और प्रादेशिक स्तर पर कृषि विभाग है, अरबों के बजट हैं, उसके बाद भी देश का 90 फीसदी किसान तकलीफ़ में है तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दोषी है।
दूसरा बड़ा वर्ग है असंगठित क्षेत्र का श्रमिक, जो दुकानों, फैक्ट्रियों, कारोबारी कार्यालयों आदि में काम करता है। एक तो अल्प वेतन भोगी और दूसरे कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं। कामकाजी उम्र पूरी होने व सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन नहीं। अगर नियोक्ता हटा दें तो श्रमिक के नाते त्वरित न्याय नहीं। उदाहरण सामने है सैंकड़ों पत्रकार अपने हितों की रक्षा के लिए श्रम अदालतों में तारीख पर तारीख भुगत रहे हैं। जब जन जन की आवाज उठाने वाले पत्रकारों को श्रम विभाग न्याय नहीं दे पाता, तो बाकी को क्या देगा। न कांग्रेस असंगठित क्षेत्र श्रमिकों की पक्षधर और न ही भाजपा।
तीसरा वर्ग है कारोबारी। यह वर्ग केंद्र सरकार के GST और आयकर कानून से त्रस्त है। GST लागू होने के बाद से अब तक 1200 से अधिक संशोधन हो गए, कानून में फिर भी विसंगतियां जारी हैं। देश के दो करोड़ से अधिक व्यापारी GST की जकड़न में हैं, भाजपा ने जकड़न दी और कांग्रेस आवाज नहीं उठा रही।
ऐसे ही हाल में आयकर विभाग ने धारा 43 B (H) लागू की है, जिसकी जकड़न में पूरे देश के कारोबारी आ गये हैं। प्रावधान यह है कि कोई कारोबारी उद्योग या व्यापार के लिए कोई वस्तु या सेवा खरीदता है और 15 दिन के भीतर भुगतान नहीं कर पाता तो खरीद का मूल्य उस खरीददार कारोबारी के लिए आय होगी और इस आय पर टैक्स देना होगा। एक बेढंगा कानून भाजपा सरकार ने लागू कर दिया। कारोबारी तबके की भाजपा में तो सुनवाई है नहीं और कांग्रेस ऐसे मुद्दों पर कुछ बोलती नहीं। दोनों ही राजनीतिक दलों से कारोबारी तबका हताश हैं।
एक बड़ा वर्ग है अभिभावक का जिनके बच्चे निजी या सरकारी स्कूल -कालेज में पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों कालेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर और पढ़ाई दोनों का लेवल घटता जा रहा है और निजी स्कूल -कालेज कारोबारी केंद्र बन गये हैं। शिक्षा की देश में सबसे अधिक उपेक्षा है और न कांग्रेस इस मामले में कुछ पहल कर रही और न भाजपा। अभिभावक ठगा जा रहा है, रक्षक कोई नहीं।
देश में सबसे बड़ा वर्ग है उपभोक्ता, सबसे अधिक शोषण उसका हो रहा है। बीस रुपए प्रति लीटर लागत वाला डीजल सरकारी कंपनियां पांच गुना मूल्य पर बेच रही हैं। बाजार इकोनॉमी अनियंत्रित है, कभी दाल 300 रूपए किलो बिक जाती है तो कभी लहसुन 600 रुपए किलो, कभी जीरा 800 रूपए किलो तो कभी नींबू 400 रुपए किलो। कहने को सरकारों में उपभोक्ता विभाग है, उपभोक्ता संरक्षण कानून भी, लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उपभोक्ता के साथ हो रही लूट नहीं रोक पा रहे।
मतदाता को किसी भी राजनीतिक दल में विजनरी एप्रोच नजर नहीं आ रही और न उनका अपना लग रहा। सबसे अधिक विरक्ति उस लूटमार से है जो नेताओं -अधिकारियों ने बेरहमी से की है, तभी केंद्र सरकार पर कर्ज भार दस साल में चार गुणा हो गया। कोई वित्तीय प्रबंधन नहीं है। विकास के नाम पर सड़क दिखती है, उस पर भी वाहन चलाने की लागत तीन रुपए प्रति किलोमीटर टोल टैक्स के जरिए लूटी जा रही है, न कांग्रेस को दर्द है न भाजपा को।
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