Election Analysis
विधानसभा चुनाव में 72 से आगे निकल सकती थी, लेकिन....
राहुल गांधी की सोच सही दिशा में नहीं होने के कारण यह हुआ। लिखने में कोई हिचक नहीं है कि हरियाणा की कांग्रेस राजनीति के अंतर्द्वंद्व को राहुल गांधी समझ नहीं पाये...
कैलाश शर्मा ✍🏻
(लेखक प्रमुख कांग्रेस विचारक व जयपुर संसदीय क्षेत्र में ग्रासरूट कनेक्ट वर्कर हैं)
Media Kesari
Jaipur
जैसी कि आशंका थी हरियाणा में वही हुआ।
जो कांग्रेस 90 में से 72 सीटें जीतने में सक्षम थी, वह आधे रास्ते भी नहीं पहुंच पाई। हरियाणा में बड़ी एंटी इनकमबैंसी (anti incumbency) थी, कांग्रेस के लिए वाक ओवर सरीखा अवसर था, लेकिन गंवा दिया। इसका संकेत तभी मिल गया था, जबकि हरियाणा कांग्रेस प्रभारी बीमार हो गए थे। स्पष्ट है कि हरियाणा कांग्रेस को परफेक्ट मोड में लाने में सक्षम नहीं थे, अतः बीमार हो कर बैठ गए।
दूसरा संकेत तब मिला, जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने अघोषित सुल्तान बना दिया। हरियाणा कांग्रेस में ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी थी, बाहर की तो बात ही अलग थी। कांग्रेस में फ्रंटलाइन के बाकी नेता उन्हें पचा नहीं पा रहे थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ( Bhupinder Singh Hooda) ने भी अपनी अघोषित सल्तनत का अधिनायकवादी प्रवृत्ति से उपयोग किया, यह कांग्रेस जनों को ही हजम नहीं हुआ, मतदाता तो आगे की बात थी। फिर AICC ने स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमैन अजय माकन (Ajay Maken)को बना कर बड़ी ग़लती कर दी थी। टिकट वितरण में वही हुआ जो दिख रहा था और नतीजा भी वही आया जो आना था। कोढ़ में खाज तब हो गई जब अशोक तंवर को कांग्रेस में चुनाव के ठीक पहले शामिल कर लिया गया, इस कृत्य ने कांग्रेस की रही सही मिट्टी और पलीत कर दी। कांग्रेस के दो अन्य फ्रंटलाइन लीडर्स शैलजा (Selja Kumari) और सुरजेवाला (Randeep Surjewala) पर नो कमेंट्स, क्योंकि इन्होंने वही किया जो कर सकते थे। लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस नहीं संभली, क्योंकि तब कांग्रेस सभी दस सीटें जीतने की स्थिति में थी, लेकिन पांच ही जीत पाई।
विधानसभा चुनाव में 72 से आगे निकल सकती थी, लेकिन राहुल गांधी जी की सोच सही दिशा में नहीं होने के कारण यह हुआ। लिखने में कोई हिचक नहीं है कि हरियाणा की कांग्रेस राजनीति के अंतर्द्वंद्व को राहुल गांधी समझ नहीं पाये। उन्होंने उन लोगों पर भरोसा किया जो आउटडेटेड थे और बिल्कुल काबिल नहीं। फिर हरियाणा में कांग्रेस का संगठन मृत प्राय था, उसे न पी सी सी चीफ परफेक्टली हैंडल कर पा रहे थे और न प्रभारी दीपक बाबरिया। जो सह प्रभारी लगाये, उनकी परफॉर्मेंस कैसी रही सामने आ गया। रही बात इलेक्शन वार रूम की, तो वह कंप्यूटर या लैपटॉप से बाहर नहीं आता, वहीं बैठकर जोड़ बाकी गुणा भाग करता रहता है। फील्ड इनपुट लेना और तदनुसार इंतजाम करने में वार रूम नाकाम रहा। अब झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव सामने हैं। जो एडवाइजर राहुल गांधी जी ने अपने चारों ओर एकत्रित कर रखे हैं, उन्हें विदा करने की जरूरत है। इसी तरह AICC में वह टीम होनी चाहिए, जिसमें जीत की ललक हो और जो बूथ लेवल पर जाकर कांग्रेस को दुरुस्त कर सके। झारखंड विधानसभा चुनाव में फाइट है, महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए भरपूर अवसर है। लेकिन जिस तरह की घेराबंदी राहुल गांधी की है, उसे देखते हुए तो झारखंड और महाराष्ट्र कांग्रेस के हाथ से निकल न जाए, यह आशंका नजर आती है।
जबकि कांग्रेस strong will power और perfect road map +action plan के जरिए भाजपा को ठोक सकती है।
हरियाणा की स्थिति से राहुल गांधी सीखें और समझें तथा सबसे पहले AICC में उन कांग्रेस साथियों को लायें, जिनके परिवार शताब्दी या अधिक समय से कांग्रेस की सेवा कर रहे हैं, जिनके पास कांग्रेस को जिताने का जज्बा हो और तदनुसार विजनरी एप्रोच भी। देश को इस समय मजबूत कांग्रेस की जरूरत है, न कि लगातार पराजित होने वाली कांग्रेस की। विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जीत सकती थी और यहां तक कि लोकसभा चुनाव 2024 में भी कांग्रेस अपने बूते बहुमत ला सकती थी। पर ऐसा नहीं हुआ। वजह थी true election winning action plan नहीं था बल्कि कांग्रेस के निष्ठावान साथियों को उपेक्षित कर दलबदलुओं को बढ़ावा व गठबंधन की राजनीति। अब आवश्यकता इस बात की है कि कांग्रेस एक तो गठबंधन की राजनीति से बचे व खुद को मजबूत करे तथा दूसरे दलबदलुओं से परहेज़ करे। दलबदलुओं पर सामान्य कांग्रेस जन भरोसा नहीं करता और ये दल बदलू कांग्रेस को नुक़सान पहुंचाते हैं। विडंबना वाली बात है कि कांग्रेस संगठन व अग्रिम संगठनों में अनेक दल बदलू महत्वपूर्ण पदों पर स्थापित हैं, उन्हें विश्राम दिया जाये। एक और बात कांग्रेस के मीडिया प्रभाग के पास न तो परफेक्ट कंटेंट होते और न वहां ऐसे लोग जिनका जनाधार भी हो। मीडिया प्रभाग में वे नेता बैठें जिनका बड़ा जनाधार हो और राजनीतिक वजूद भी। जो फील्ड में चुनाव नहीं जीत सकते, ऐसे लोगों को कोई गंभीरता से नहीं लेता, अतः वहां भी बदलाव जरूरी है।
0 Comments