Mallikarjun Kharge at CWC meet: 'How long will you depend on national leaders?'
कैलाश शर्मा ✍🏻
(वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक)
जयपुर
मल्लिकार्जुन खड़गे(Mallikarjun Kharge) ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की वर्किंग कमेटी बैठक {Congress Working Committee (CWC) Meeting}में एक बात महत्वपूर्ण कही कि राज्यों में चुनाव राष्ट्रीय नेताओं के भरोसे न लड़ा जाये। बात शत प्रतिशत सही भी है, इसलिए कि राष्ट्रीय स्तर पर अब बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसी क्षमता रखने वाला ऊर्जावान नेतृत्व है भी नहीं। बल्कि इन सबकी तुलना में दो प्रतिशत क्षमता भी वर्तमान मौजूद किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता में नहीं है। यही वजह है कि देश में कांग्रेस केवल तीन राज्यों में सरकार चला पा रही है, बाकी सब जगह प्रभारियों की अनदेखी और स्थानीय नेतृत्व की विवशता से त्रस्त है।
इस तरह कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। खड़गे की बात वाजिब भी है, क्योंकि 2014 लोकसभा चुनाव से कांग्रेस लगातार तीन बार हार रही है और कांग्रेस सांसदों की संख्या तीन अंकों में भी नहीं पहुंच रही।
खड़गे की उक्त स्वीकारोक्ति के बाद अब एक फैसला जरूरी हो गया है और यह कि कांग्रेस संगठन में प्रभारी व्यवस्था समाप्त हो। इसलिए कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रतिनिधि हैं, चूंकि राज्यों में कांग्रेस को राष्ट्रीय नेतृत्व के भरोसे नहीं रहना है तो सबसे पहले आवश्यक है कि राष्ट्रीय नेतृत्व अपने प्रतिनिधित्व को समेट ले।
मैं यह बात पूरी सच्चाई के साथ कह सकता हूं कि जिन जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है या कांग्रेस पराजित हुई है, उन राज्यों में प्रभारियों ( महासचिवों व संयुक्त सचिवों) की अकर्मण्यता और बेईमानी जिम्मेदार है। हाल के चुनावों में कांग्रेस की हार चाहे हरियाणा या महाराष्ट्र में हुई हो, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में हुई हो या पंजाब व उत्तराखंड में हुई हो, सब जगह प्रभारियों के कृत्यों के कारण नुकसान हुआ है।
ये प्रभारी या सह प्रभारी AICC के खर्चे पर राज्यों में जाते हैं, वहां स्थानीय नेताओं के खर्च पर obligatory stay, food and other facilities का लाभ उठाते हैं, आनंद करते हैं और फिर राजा शाही अंदाज़ में अपना स्वागत करवाते हैं। मिठाई के डिब्बे, उपहार आदि स्वीकार करते हैं। जो जितना बड़ा उपहार दे, उसका राजनीतिक सहयोग करते हैं और जो ग्रासरूट का रियल वर्कर है, उसे ज्ञान देते हैं। एक सह प्रभारी का किस्सा देखा है एक विधानसभा क्षेत्र के टिकटार्थी की मल्टी स्टार होटल में रूकते थे। इन टिकटार्थी का परिवार लगातार हार रहा था, खुद भी हारे हुए थे। लेकिन सह प्रभारी सेवा से प्रसन्न थे और टिकट दिलवाने में कामयाब रहे। ऐसे सैंकड़ों किस्से हैं, अतः कांग्रेस हित में जरूरी है कि राज्यों के प्रभारी व सह प्रभारी तंत्र को समाप्त किया जाए। देश के 90 फीसदी से अधिक राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है और लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस 444 सीटों पर साफ है, इसके लिए ये प्रभारी और सह प्रभारी जिम्मेदार हैं।
जहां तक बात राज्यों की है, वहां फ्रंटलाइन लीडर्स कांग्रेस को अधिक नुकसान कर रहे हैं और विडंबना यह कि राष्ट्रीय नेतृत्व नुकसान पहुंचाने वालों पर भरोसा कर रहा है। एक उदाहरण राजस्थान का है, यहां एक नेता जो कि महत्वपूर्ण पद पर स्थापित थे, उन्होंने भाजपा से मिलीभगत कर राजस्थान की कांग्रेस सरकार गिराने के प्रयास किए, इस आशय के आरोप तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने लगाये भी थे। बाद में इस नेता ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार के खिलाफ गवर्नमेंट होस्टल पर धरना दिया और भांकरोटा में रैली भी की। पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने इन्हें फिर भी वरीयता दी। विधानसभा चुनाव को लेकर भी इन नेताजी पर बहुत से आरोप हैं, पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने ग्राउंड रियलिटीज की परवाह नहीं की, बल्कि इन्हें कलेजे से लगा रखा है। जब राष्ट्रीय नेतृत्व ही नुकसान पहुंचाने वालों को प्रमोट करने में जुटा हुआ है, तो जाहिर है मल्लिकार्जुन खड़गे ने सही कहा है कि राष्ट्रीय नेतृत्व के भरोसे न रहें।
खड़गे ने संगठन को लेकर जो कुछ कहा वह सच है और पीड़ादायक भी। जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष और प्रांत का प्रभारी-सह प्रभारी बनाया जाता है, वे बूथ एरिया में जाकर कांग्रेस परिवारों से मिलते ही नहीं और न यह कोशिश करते कि उन परिवारों के बूथ एरिया से कांग्रेस को पंचायत/स्थानीय निकाय, विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कैसे लीड मिले। न कांग्रेस परिवारों को मोटीवेट करते, बल्कि ज्ञान देते रहते हैं। बूथ पर फील्ड वर्किंग के बिना कांग्रेस मजबूत नहीं हो सकती। जितने भी AICC व PCC delegates है, वे DCC delegates को साथ लेकर बूथ एरिया में विजिट करें, प्रवास करें और कांग्रेस परिवारों से मिलकर उन्हें मोटीवेट करें।
कांग्रेस के लिए एक बात और जरूरी है और वह यह कि टिकट व नेतृत्व स्थानीय व्यक्ति को ही दिया जाये। विधानसभा लोकसभा चुनाव के उसी को जिसका जन्म संबंधित क्षेत्र में हुआ हो और जो वहां पला पढ़ा व बड़ा हुआ हो। ऐसे व्यक्ति के साथ जन जन की आत्मीयता होती है और वह जीतने योग्य भी होता है। इसी तरह राज्यों का नेतृत्व भी उसी को जो उस प्रांत में जन्मा हो। राजस्थान का उदाहरण फिर सामने है एक ऐसे व्यक्ति को थोपा गया जिसका जन्म न राजस्थान में हुआ और न यहां की स्कूल कालेज में पढ़ा। राष्ट्रीय नेतृत्व प्रांतों में बाहरी नेतृत्व थोपने की परंपरा से दूर रहें।
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