'वन मैन शो' स्वीकार कर लिया है राज्य मंत्रिमंडल सदस्यों ने - कैलाश शर्मा
राइजिंग राजस्थान (Rising Rajasthan Investment Summit) के निवेश प्रस्ताव क्लीयरेंस में मुख्यमंत्री भजनलाल ( CM Bhajan Lal Sharma) की संपूर्ण सदारत और वन मैन शो की सिचुएशन है। राजस्थान सरकार के किसी अन्य मंत्री की भूमिका या भागीदारी अभी तक दृष्टिगत नहीं हुई है।
प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल का कोई सदस्य इस बात पर कतई असंतोष नहीं जता रहा कि निवेश प्रस्तावों की क्लीयरेंस के तमाम अधिकार मुख्यमंत्री ने खुद तक, मुख्य सचिव तक तथा प्रशासनिक अधिकारियों तक सीमित कर दिए हैं। अन्य मंत्रियों का आयोजन पूर्व जितना विश्व भ्रमण कराया जाना था, वह करा दिया, अब सब शांत हैं।
प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक कैलाश शर्मा के अनुसार कम से कम दस मंत्री ऐसे हैं, जिनके विभागों से संबंधित परियोजनाओं के निवेश प्रस्ताव आए हैं, लेकिन किसी भी मंत्री की इन परियोजनाओं में स्वीकृति को लेकर कोई भूमिका नहीं है। जो 36.6 लाख करोड़ रुपए के एम ओ यू हुए हैं उनमें करीब 28 लाख करोड़ रुपए के ऊर्जा क्षेत्र में हुए हैं और इन परियोजनाओं की क्लीयरेंस में प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर की घोषित तौर पर कोई भूमिका दृष्टिगत नहीं हो रही। ऐसे ही उद्योग, पर्यटन, खनिज, उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि व डेयरी प्रसंस्करण आदि क्षेत्रों में हजारों एम ओ यू हुए हैं, लेकिन इनके क्लीयरेंस का काम या तो मुख्यमंत्री खुद करेंगे या राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव या फिर संबंधित विभागों के अधिकारी।
मंत्रियों का ऐसा कोई कोर ग्रुप या समूह नहीं बनाया गया जिसकी निवेश प्रस्ताव क्लीयरेंस में कोई भूमिका हो।
राज्यवर्धन सिंह राठौड़, किरोड़ी लाल मीणा, प्रेम चंद बैरवा, दीया कुमारी, गजेन्द्र सिंह खींवसर, जोराराम कुमावत, झाबर सिंह खर्रा और संजय शर्मा आदि ऐसे नाम हैं, जिनके विभागों से संबंधित परियोजनाओं के एम ओ यू हुए हैं। पर इन सब ने राइजिंग राजस्थान के निवेश प्रस्तावों का क्लीयरेंस मुख्यमंत्री भजनलाल के सुपुर्द कर अपना ध्यान अन्य प्रशासनिक कार्यों पर केंद्रित कर दिया है।
अब तक जो सिस्टम रहा है, उसमें वैसे भी मंत्रियों की भूमिका निवेश प्रस्तावों की क्लीयरेंस में नहीं रहती।
मुख्यमंत्री ही पावरफुल होते हैं और जो समितियां होती हैं वे मुख्यमंत्री, मुख्यसचिव और जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली होती हैं। यह परंपरा देखकर सभी मंत्रियों ने संतोष रखना उचित समझा है, क्योंकि वे अगर किसी जिम्मेदारी से जुड़ते हैं तो स्वाभाविक है कि उनकी जवाबदेही भी बढ़ती है। अतः जो जैसा चल रहा है, उसे स्वीकार करने के अलावा मंत्रियों के पास कोई विकल्प भी नहीं है।
राजस्थान सरकार में राज चाहे कांग्रेस का रहा हो या भाजपा का, निवेश प्रस्ताव रूटीन में आयें हो या राइजिंग राजस्थान अथवा इन्वेस्ट राजस्थान के जरिए, सभी की क्लीयरेंस में विभागीय मंत्रियों को कंसल्ट करने की परंपरा देखने को नहीं मिली है। वैसे चूंकि वे लोकतांत्रिक आधार पर संबंधित विभागों के प्रमुख हैं, नीति निर्धारण और महत्वपूर्ण फैसलों तथा क्लीयरेंस में उनकी भूमिका होनी चाहिए, पर परिस्थिति वश नहीं है।
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