"कार्यालय से बाहर जाइए!" – सांसद इकरा हसन के अपमान की जांच में अफसर को मिली क्लीन चिट, मगर लोकतंत्र पर उठे गंभीर सवाल

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Kairana News

क्या अफसरशाही अब जनप्रतिनिधियों के लिए जवाबदेह नहीं? जांच रिपोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल


 गुलवेज़ आलम ✍🏻

स्वतंत्र पत्रकार, कैराना

Media Kesari


सहरनपुर-07 अगस्त 2025। समाजवादी पार्टी की दबंग और बेबाक कैराना लोकसभा सांसद इकरा हसन (Iqra Hasan Choudhary) के साथ सरकारी दफ्तर में हुए कथित अपमानजनक व्यवहार का मामला अब सुलझने की बजाय और उलझ गया है। इस मामले की जांच रिपोर्ट सामने आ चुकी है और उसमें सांसद के आरोपों को पूरी तरह नकारते हुए संबंधित अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई है।

Media Kesari, मीडिया केसरी, latest news today, up ki taza news,सहरनपुर-07 अगस्त 2025। समाजवादी पार्टी की दबंग और बेबाक कैराना लोकसभा सांसद इकरा हसन (Iqra Hasan Choudhary) के साथ सरकारी दफ्तर में हुए कथित अपमानजनक व्यवहार का मामला अब सुलझने की बजाय और उलझ गया है। इस मामले की जांच रिपोर्ट सामने आ चुकी है और उसमें सांसद के आरोपों को पूरी तरह नकारते हुए संबंधित अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई है।


 रिपोर्ट में न सिर्फ अफसर को निर्दोष बताया गया है, बल्कि उल्टा यह कहा गया है कि अफसर ने कोई अमर्यादित भाषा का प्रयोग नहीं किया, मकान गिराया ही नहीं गया, और सभी कार्रवाइयाँ निष्पक्ष एवं नियमों के अनुसार की गईं। यानी कुल मिलाकर जांच में यह निष्कर्ष निकला कि इकरा हसन को जो अनुभव हुआ, वह या तो गलतफहमी थी या बेबुनियाद आरोप।


पूरा मामला उस समय तूल पकड़ा जब सांसद इकरा हसन छुटमलपुर की नगर पंचायत चेयरपर्सन के साथ सहारनपुर के एडीएम कार्यालय पहुंचीं। वहां उनके अनुसार एडीएम प्रशासन ने उनसे न केवल बदसलूकी की, बल्कि उन्हें दफ्तर से बाहर जाने के लिए कह दिया। सांसद का स्पष्ट आरोप था कि अफसरशाही बेलगाम हो चुकी है और जनप्रतिनिधियों को अपमानित करने से भी नहीं चूक रही। उन्होंने यह भी कहा कि अफसर ने फोन पर भी उनसे अभद्र भाषा में बात की और तंज कसते हुए यह तक कह डाला कि “आप कैसी सिफारिशें लेकर आती हैं, सांसद महोदय?” मामला यहीं नहीं रुका। सांसद ने आरोप लगाया कि गांव बरथा कायस्थ में एक गरीब परिवार का मकान प्रशासन ने जबरन गिरा दिया, जबकि परिवार ने दो दिन की मोहलत मांगी थी। महज़ दो घंटे में बुलडोज़र चला दिया गया और बाद में पीड़ित परिवार पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया गया।


सांसद ने पूरा प्रकरण मंडलायुक्त को लिखित में शिकायत के रूप में सौंपा और यह मुद्दा संसद में भी जोरशोर से उठाया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अफसरशाही अब जवाबदेही से मुक्त होकर तानाशाही पर उतर आई है। उन्होंने मांग की कि संबंधित अधिकारी पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में किसी जनप्रतिनिधि के साथ ऐसा दुर्व्यवहार न हो।


इस गंभीर शिकायत की जांच का जिम्मा मंडलायुक्त ने जिला मजिस्ट्रेट को सौंपा, और डीएम ने मामले की जांच के लिए अपने ही अधीनस्थ एडीएम (वित्त एवं राजस्व) को नियुक्त कर दिया। जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गांव में मकान नहीं गिराया गया बल्कि तालाब की जमीन पर बने अवैध कब्जे को हटाया गया था, जहां एक अस्थायी दीवार थी और गेहूं-चारा काटने की मशीन रखी गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, पूरी कार्रवाई नियमानुसार की गई और अफसर ने मर्यादित भाषा में फोन पर बात की।


जांच रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करते हुए मंडलायुक्त अटल कुमार राय ने सभी अधिकारियों को एक सामान्य निर्देश जारी किया कि वे जनप्रतिनिधियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करें। यह निर्देश और पूरी जांच रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि अफसरशाही ने न सिर्फ खुद को निर्दोष साबित किया, बल्कि एक महिला सांसद के आरोपों को नकारते हुए पूरे सिस्टम को क्लीन चिट थमा दी।


अब सवाल उठ रहा है कि जब एक लोकसभा सांसद को न्याय नहीं मिल सकता, जब उसकी आवाज़ संसद और प्रशासन दोनों जगह अनसुनी की जा सकती है, तो आम जनता की शिकायतों का क्या हाल होता होगा? क्या एक सांसद की बात को भी झुठला देना इतना आसान हो गया है? क्या सिस्टम अब खुद के बचाव में इतना पारंगत हो चुका है कि सच्चाई जांच रिपोर्टों में दबा दी जाती है?


सपा सांसद इकरा हसन ने जिस साहस के साथ अफसरशाही के खिलाफ आवाज़ उठाई, वह अपने आप में बेमिसाल है। उन्होंने एक गरीब परिवार की पीड़ा को न केवल महसूस किया, बल्कि उसके लिए खुलकर लड़ाई लड़ी। उन्होंने अफसर की तानाशाही के सामने झुकने से इनकार कर दिया, भले ही सिस्टम ने उन्हें न्याय देने से इनकार कर दिया हो।


इस पूरे मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जांच रिपोर्टें अब महज़ औपचारिकता बनकर रह गई हैं? क्या अफसरशाही खुद को बचाने में इतनी ताक़तवर हो चुकी है कि जनप्रतिनिधि भी उनके सामने लाचार हो गए हैं?


अगर सांसद की बातों को यूं खारिज किया जाता रहा, तो लोकतंत्र की नींव दरक जाएगी। आज इकरा हसन की बारी थी, कल किसी और जनप्रतिनिधि की होगी। अगर जनता खामोश रही, तो एक दिन उसे भी यही तर्जुबा भुगतना पड़ेगा...सवाल पूछने पर क्लीन चिट, अपमान की शिकायत पर "गलतफहमी" और सच्चाई पर पर्दा।


यह सिर्फ एक सांसद का अपमान नहीं, ये लोकतंत्र को आईना दिखाने वाली घटना है। और अगर आज भी ये समाज खामोश रहा, तो कल लोकतंत्र केवल कागजों में रह जाएगा, और अफसरशाही ही असली सरकार बन जाएगी।   

   ( यह खबर किसी एक पक्ष के समर्थन में नहीं, बल्कि लोकतंत्र के सम्मान और जनता के हक में लिखी गई है।)

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