Kairana Political News
"यह एसआईआर नहीं, दरअसल ‘सरकार का इमरजेंसी रूल’ है"- इकरा हसन
✍️ गुलवेज़ आलम
स्वतंत्र पत्रकार, कैराना
Media Kesari
कैराना/दिल्ली। सोमवार को दिल्ली की सड़कों पर जो मंजर देखने को मिला, उसने साफ कर दिया कि देश अब चुप रहने वाला नहीं है। सत्ता के हुक्मरानों द्वारा थोपे गए एसआईआर जैसे ‘काले कानून’ के खिलाफ बगावत ( SIR Protest) का बिगुल बज चुका है।
संसद से लेकर चुनाव आयोग तक विपक्षी सांसदों ( INDIA Alliance Protest) का सैलाब उमड़ पड़ा, और इस तूफान की अगुवाई कर रही थीं कैराना की जांबाज़ सांसद इकरा हसन (Iqra Hasan),जिनकी बुलंद आवाज़ ने सत्ता के गलियारों में भूचाल ला दिया।
चुनाव आयोग के बाहर माइक थामते हुए इकरा हसन ने तड़पती हुई आवाज़ में सरकार पर सीधा वार किया-
"यह एसआईआर नहीं, दरअसल ‘सरकार का इमरजेंसी रूल’ है। इसे लागू करके लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वोटों की चोरी को वैध किया जा रहा है, और विपक्ष की हर आवाज़ को रौंदने की साज़िश रची जा रही है। लेकिन याद रखो—हम डरेंगे नहीं, झुकेंगे नहीं और चुप भी नहीं रहेंगे।"
उन्होंने साफ कहा—
"तानाशाहों को यह समझ लेना चाहिए कि जनता की चुनी हुई आवाज़ को बंदूक की नली से नहीं दबाया जा सकता। यह लड़ाई अब सड़कों पर लड़ी जाएगी, और संसद से लेकर गली-मोहल्लों तक चलेगी।"
सड़कों पर उबलता गुस्सा, नारे बने बिजली की गड़गड़ाहट
मार्च के दौरान ‘तानाशाह मुर्दाबाद’, ‘लोकतंत्र ज़िंदाबाद’, ‘एसआईआर वापस लो’, ‘चुनाव आयोग जागो’ जैसे नारों ने दिल्ली की हवा को चीर डाला। जगह-जगह बैरिकेड तोड़े गए, पुलिस बल तैनात हुआ, लेकिन जनसैलाब को रोकना नामुमकिन था। राजधानी के कई इलाकों में ट्रैफिक तक थम गया, और यह साबित हो गया कि जनता के सब्र का बांध अब टूट चुका है।
इकरा हसन का ऐलान – यह तो बस शुरुआत है
इकरा हसन ने चेतावनी दी—
"अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो अगला कदम होगा देशव्यापी आंदोलन। लाखों लोग संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करेंगे, और वोट चुराने वालों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा।"
लोकतंत्र पर हमला, संविधान की आत्मा पर वार
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि एसआईआर केवल एक कानून नहीं, बल्कि लोकतंत्र के खिलाफ सरकार का सुनियोजित हथियार है—एक ऐसा हथियार जिससे विपक्ष को डराने, आंदोलनों को कुचलने और जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का काम किया जा रहा है।
राजनीति में उठता तूफ़ान
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इकरा हसन जैसी युवा और जुझारू सांसद की सड़कों पर उतरकर सीधी लड़ाई लड़ने की रणनीति आने वाले चुनावों में सत्ता का गणित बिगाड़ सकती है। अगर यह आक्रोश यूं ही बढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में गांव-गांव से लेकर संसद के दरबार तक सत्ता की कुर्सी हिल सकती है।
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