झोपड़ी से यूरोप तक का सफर तय करने वाली रूमा देवी (Ruma Devi) ने बच्चों से साझा की अपने संघर्ष की कहानी

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Digital baal mela 2021 season 2

कोशिश करने वालों की नहीं होती कभी हार, हर परिस्थितयां बनाती हैं हमें मजबूत -  Ruma Devi


Media Kesari ✍🏻


 जयपुर-23 जून।  बच्चों की संवेदनाओं को स्थान देने एवं उनकी creativity को समाज के सामने लाने के उद्देश्य से फ्यूचर सोसाइटी और एलआईसी द्वारा 'डिजिटल बाल मेला 2021' सीजन2  (Digital baal mela 2021 season 2) के रूप में बच्चों को रचनात्मक मंच प्रदान किया जा रहा है।

इस मंच से देश भर से बच्चे जुड़ रहे हैं और अपने विचार रख रहे हैं।  

उक्त बाल मेले में अब 'बच्चों की सरकार कैसी हो' के लिए आयोजित किए जा रहे सेशन में बच्चे काफी उत्सुक नजर आ रहे है। बाल राजनीति में कदम रखने जा रहे ये बच्चे इस मंच के जरिए अब ना सिर्फ राजनीति बल्कि समाज का भी महत्वपूर्ण अध्याय पढ़ रहे है।पिछले दिनों जहां बच्चों ने विधायकों से राजनीति के गुर सीखें तो वही उन्होंने योग ट्रेनर से योगा के टिप्स भी लिये।  तो वही एक गंभीर विषय मेंटल हेल्थ पर भी बात की। अब इन सभी के बाद आज बुधवार को बच्चों को विश्वप्रसिद्ध रूमा देवी (Ruma Devi -an Indian traditional handicraft artisan) से सीधे संवाद करने का सुअवसर मिला।


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 ये मौका ना सिर्फ बच्चों बल्कि रूमा देवी के लिए भी काफी अनुभवी रहा। पहली बार रूमा देवी ने इस सेशन के जरिए बच्चों से वर्चुअल बात की। उन्हें अपनी जिंदगी के संघर्षो के बारें में बताया तो वही आज के संवाद का मुख्य विषय कोरोना काल में बच्चे अपने आपको कैसे व्यस्त रखें इस पर चर्चा की। बच्चों को कोरोना महामारी (corona outbreak) के दौरान हुए मानसिक तनाव से बाहर निकालने के लिए उन्हें किसी ना किसी काम के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए आज रूमा देवी ने बच्चों संग सीधा संवाद किया। जहां उन्होंने बच्चों संग ऐसे कई तरीके बताएं जिनसे बच्चे ना सिर्फ बिजी रहेंगे बल्कि अपने हूनर और अपनी कला से देशभर में अपना नाम भी कर सकेंगे। 

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Ruma Devi, who traveled from hut to Europe, shared the story of her struggle with the children.


सर्वप्रथम 10 वर्षीय लावण्या ने  बच्चों को रूमा देवी का परिचय दिया। उन्होंने रूमा देवी के छोटे से गांव से निकलकर आज विश्वभर में अपना नाम करने की कहानी बताई। किस तरह रूमा देवी ने फैशन डिजाइनर बनने का ये सफर तय किया। इस दौरान बच्चों से अपना परिचय सुनकर रूमा देवी काफी खुश हुई और उन्होनें बच्चों से अपने अनुभव साझा किये।



रूमा देवी (भारतीय पारंपरिक हस्तकला कारीगर) ने बताया कि वो जब 4 साल की थी तभी उनकी मां गुजर गई थी ऐसे में 17 साल की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई थी और 8वीं पास रूमा देवी की पढ़ाई वही छूट गई थी। शादी के बाद उनकी परिस्थितियां बहुत खराब थी ऐसे में उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें कुछ करना होगा आर्थिक तंगी से जूझ रही, समाज की बेड़ियों में पली बढ़ी रूमा देवी के लिए ये सब आसान नहीं था। 

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उनके सिर्फ कुछ करने का फैसला लेने पर ही गांव में विरोध होने लगा था लेकिन रूमा ने किसी भी विरोध को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। रूमा देवी ने कहा कि जब हमारे हौसलों में ताकत होती है तो हम कुछ भी कर सकते है। ऐसे में चाहे कोई भी परिस्थिति हो यदि हम उसका सामना सोच—समझकर और डटकर करेंगे तो वो हमें भविष्य में सबसे मजबूत बनाने का कारण बनेंगी। इसलिए रूमा देवी ने कहा कि हमें कभी नहीं घबराना चाहिए। और हमेशा मुश्किलों का सामना करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।



ऐसे में प्रतापगढ़ के काव्य गाड़िया ने जब रूमा देवी से पूछा कि उन्होंने फैशन डिजाइनिंग को ही क्यों चुना तो रूमा देवी ने कहा कि क्योंकि बचपन में उन्होंने अपनी दादी से कढ़ाई—बुनाई का काम सीखा था और जब शादी के बाद हमारी परिस्थितियां ऐसी बनी तो वो काम मुझे बहुत अच्छे से आता था इसलिए मैनें वो चुना और अपने गांव की 10 महिलाओं को साथ लेकर काम शुरू कर दिया। 

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रूमा देवी कहती है कि आज सुई—धागा जो होने मे बहुत छोटी चीज है लेकिन एक ऐसी चीज है जिसका मुकाबला कोई नहीे कर सकता है और इसीलिए दुनिया मे कोई काम छोटा नहीं होता है सबकी अपनी एक खास अहमियत होती है। इसलिए किसी भी काम को छोटा नहीं मानना चाहिए।

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